नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 से पहले सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी ने राजनीति में एंट्री की है. कांग्रेस ने उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया है. प्रियंका को उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल का प्रभार दिया गया है. यह पहली बार है जब प्रियंका को कांग्रेस में जिम्मेदारी मिली है. इससे पहले वो गाहे-बगाहे राहुल और सोनिया गांधी के साथ चुनावी रैलियों में देखी जा चुकी हैं. मोतीलाल नेहरू से लेकर प्रियंका गांधी तक, भारत के इस ‘प्रथम परिवार’ का राजनीति के क्षेत्र में सीधा दखल रहा है. नेहरू- गांधी परिवार से राजनीति के क्षेत्र में कदम रखने वाली प्रियंका गांधी 11वीं सदस्य हैं.
गांधी परिवार के राजनीति में आने का सिलसिला मोतीलाल नेहरू से शुरू होता है. 1940 के दशक में मोतीलाल नेहरू कांग्रेस सदस्य के रूप में काम किया और अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में उनके परिवार से कई लोगों ने भाग लिया था. मोती लाल नेहरू 1919-1920 और 1928-1929 के दौरान 2 बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे.
मोतीलाल नेहरू के बाद नाम आता है उनके बेटे जवाहरलाल नेहरू का. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से ग्रैजुएशन करने वाले नेहरू ने 1912 में राजनीति में कदम रखा. 1923 में नेहरू को कांग्रेस का महासचिव बनाया गया. आगे चलकर नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के पद पर रहे. यह पद उनकी मौत के बाद खाली हुआ.
नेहरू के जीवित रहते हुए ही गांधी परिवार से एक अन्य सदस्य ने राजनीति में कदम रखा और वो थीं उनकी बेटी इंदिरा गांधी. 1958 में उन्हें कांग्रेस के केंद्रीय संसदीय बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया. वो लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष रहीं. भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित इंदिरा आगे चलकर देश की प्रधानमंत्री बनीं. इसके अलावा वह कैबिनेट में भी कई पदों पर रहीं. 1984 में उनकी हत्या कर दी गई थी.
इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी भी राजनीति में काफी सक्रिय थे. स्वतंत्रता सेनानी और लोकसभा के प्रभावशाली सदस्य फिरोज गांधी ने रायबरेली से आम चुनाव में जीत दर्ज की और संसद पहुंचे. ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में सक्रिय भूमिका निभाने वाले फिरोज ‘नेशनल हेराल्ड’ के प्रबंध निर्देशक के पद पर भी रहे. सितंबर, 1960 में उनका निधन हो गया.
इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की 1980 में राजनीति में एंट्री हुई, हालांकि ऐसा कहा जाता है कि इंदिरा की कैबिनेट में संजय गांधी का सीधे तौर पर दखल था. उन्होंने उत्तर प्रदेश के अमेठी से आम चुनाव जीता. जिसके बाद 1980 में अल्पआयु में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मौत हो गई.
संजय गांधी की मृत्यु के बाद, इंदिरा गांधी ने राजनीति में दिलचस्पी नहीं रखने वाले राजीव गांधी को पायलट की नौकरी छोड़कर फरवरी, 1981 में राजनीति में प्रवेश के लिए प्रेरित किया. राजीव इंदिरा के निधन के बाद भारी बहुमत के साथ चुनाव जीते और 1984 में देश के प्रधानमंत्री बने. हालांकि, इसी दौरान बोफोर्स कांड उछला और अगले चुनाव में कांग्रेस को हार मिली. 1991 में एक बम धमाके में राजीव गांधी की हत्या कर दी.
राजीव गांधी की मौत से पहले 1988 में संजय गांधी की पत्नी और वर्तमान की केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी की राजनीति में एंट्री हुई, उन्हें जनता दल का महासचिव बनाया गया. 1989 में वो सांसद चुनी गईं. संजय गांधी की मौत के बाद मेनका गांधी परिवार से अलग हो गईं थीं. 1996 में उन्होंने पीलीभीत से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 1999 में उन्होंने भाजपा का साथ दिया और 2004 में भाजपा का दामन थाम लिया.
राजीव गांधी के निधन के बाद गांधी परिवार की तरफ से राजनीति में उनकी पत्नी सोनिया गांधी ने कदम रखा. रायबरेली से सांसद सोनिया ने शुरुआत में कहा था कि मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूंगी, लेकिन मैं राजनीति में कदम नहीं रखूंगी. हालांकि, 1997 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की. 1998 में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. 1999 में उन्होंने लोकसभा चुनाव जीता. उन्होंने लंबे समय तक कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभाला. इस समय वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की प्रमुख हैं.
सोनिया गांधी के बाद गांधी परिवार से वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राजनीति में कदम रखा. उन्होंने मार्च, 2004 में उन्होंने अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ा और भारी मतों के अंतर से जीत दर्ज की. इस समय उनके नेतृत्व में कांग्रेस लोकसभा चुनाव की तैयारी में है और इसी कड़ी में उन्होंने अपनी बहन प्रियंका को राजनीति में उतारने का फैसला किया है.
प्रियंका के अलावा उनके चचेरे भाई और मेनका गांधी के बेटे वरुण गांधी ने 2004 में राजनीति में भाजपा का दामन थामा. इसके बाद वो 2009 में पीलीभीत से चुनाव लड़े और जीत भी दर्ज की. 2014 में उन्होंने सुल्तानपुर से लोकसभा चुनाव लड़ा और यहा भी जीत दर्ज की. वरुण का नाम बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शामिल है.