शिवानन्द द्विवेदी
यह कोई 2012-13 का वाकया है जब अखिलेश यादव नए-नए ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उस दौरान एकबार मुलायम ने अखिलेश को समझाइश देते हुए कहा था ‘सुनिए, मुख्यमंत्री जी, मैं दिल्ली में आडवाणी जी से मिला तो उन्होंने कहा कि यूपी में क़ानून व्यवस्था की हालत खराब है, भ्रष्टाचार का बोलबाला है। आडवाणी जी बड़े नेता हैं और झूठ नहीं बोलते। सख़्त हो जाइए, अपराधियों में डर पैदा होना चाहिए।”
जब मुलायम यह समझाइश दे रहे थे, तब समाजवादी पार्टी से मुलायम राज का खात्मा नहीं हुआ था। वे पार्टी के नेता हुआ करते थे। अब मुलायम कुछ अलग-थलग पड़ चुके हैं। यूपी की सियासत के इस बूढ़े बाज के तेवर अब कुछ नरम पड़ चुके है।
बुधवार को लोकसभा में बोलते हुए मुलायम सिंह यादव ने नरेंद्र मोदी की तारीफ़ की और कहा कि ‘मेरी शुभकामना है कि प्रधानमंत्री जी आप फिर प्रधानमंत्री बने।‘ यह एक बड़ा और चौंकाने वाला बयान है। जब मुलायम यह बोल रहे थे तब उनके बगल में सोनिया गांधी बैठी थीं। राहुल गांधी सदन से नदारद थे।
पता नहीं मुलायम के इस बयान के बाद सदन में बैठे भाजपा विरोधी दलों के मन में क्या आया होगा। सवाल यह भी है कि सियासी अखाड़े में अपने धोबीपाट दांव के लिए मशहूर मुलायम की बात सुनकर मायावती क्या सोच रही होंगी। जानना रोचक होगा कि इस बयान के बाद अखिलेश के के मन में क्या आया होगा। कभी बसपा को अपना जानी दुश्मन मानकर गली से बूथ तक जान लड़ाने वाले वे समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता क्या सोच रहे होंगे, जो नारा देते नहीं थकते थे- ‘जलवा जिसका कायम है, उसका नाम मुलायम है।‘
खैर, मैं मुलायम के इस बयान के बहाने यूपी की सियासत में बह रही उस बयार की तपिश को महसूस कर रहा हूँ, जो शायद आगामी चुनावों में ख़ास असर करने वाली है। दरअसल सपा-बसपा का गठबंधन होने के बाद, सबकी नजरें शिवपाल पर थीं। लोग पूछ रहे थे शिवपाल क्या करेंगे ? चूंकि मुलायम के अच्छे-बुरे दिनों में अखिलेश से ज्यादा शिवपाल साथ रहे हैं। इसलिए मुलायम का मोह अखिलेश के प्रति है तो विछोह भाई के प्रति भी छलक ही जाता है। हालांकि राजनीति की उबड़-खाबड़ सतह पर सपाट राजनीति करने वाले मुलायम का यह ‘दुविधा काल’ चल रहा है, फिर भी उनकी बातों के मायने गहरे हैं।
सपा-बसपा गठबंधन की आधिकारिक घोषणा के बाद गत दिनों सोशल मीडिया पर एक स्लोगन तैर रहा था, ’38 पर मेरा लाल लड़ेगा, बाकी पर शिवपाल लड़ेगा।‘ यह नारा मुलायम के मौन से निकली एक ध्वनि थी। ऐसा मानना है कि अगर वाकई ऐसा हो गया तो संभावना है कि मायावती सस्ते में निपट जायेंगी। खैर, बुधवार को संसद में दिए बयान के बाद मुलायम ने अपने मौन की ध्वनि से उभरे उस नारे को मानों समर्थन दे दिया हो।
समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को मानों मुलायम ने दबी जबान में कह दिया हो कि ’38 पर मेरा लाल लड़ेगा, बाकी पर शिवपाल लड़ेगा।‘ इसमें शिवपाल की भूमिका उतनी ही होगी जितनी अखिलेश के लिए जरूरी है।
चूंकि मुलायम की बात को अगर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता समझ लिए तो समझिये कि यूपी में समाजवादी पार्टी की सीटें पिछली बार से बेहतर हो सकती हैं, लेकिन बसपा पिछली बार से अच्छा कुछ भी करने की स्थिति में नहीं होगी।
यूपी की सियासत में बने नए समीकरणों के बीच मुलायम का यह बयान इसबात का भी संकेत है कि वे बसपा को आज भी अपना प्रमुख शत्रु दल मानते हैं। वे बसपा को जिताने की बजाय भाजपा को जिताने में ज्यादा सुविधा महसूस करते हैं। इस बयान के संकेत यह भी हैं कि सपा जिन 38 सीटों पर लड़ेगी, वहां मुलायम की मंशा अपने बेटे अखिलेश को जिताने की रहेगी, लेकिन बाकी 38 पर वे बसपा को हराने के लिए भाजपा के साथ भी जाना पड़े तो जा सकते हैं।
संसद के माध्यम से मुलायम की यह अपील मायावती अगर समझ पा रहीं हों तो उन्हें सतर्क हो जाना चाहिए। वरना यह कहावत अब कुछ ऐसे कही जायेगी कि ‘मुलायम का मारा पानी भी नहीं मांगता है।”
चूंकि बगल में सोनिया गांधी बैठी थीं तो उनकी भी थोड़ी चर्चा करते हैं। मुलायम कांग्रेस के प्रति बेफिक्र हैं। उन्हें यूपी में कांग्रेस की जमीन का अंदाजा है। इसीलिए 2017 के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने सपा-कांग्रेस गठबंधन से नाखुशी जाहिर की थी। अखिलेश तब नहीं माने थे और गलत साबित हुए। अब एकबार फिर मुलायम ने अपनी मंशा बता दी है। इसबार समझने की बारी मायावती की है।