नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में कुलभूषण जाधव के मामले की सुनवाईके पहले दिन (सोमवार को) भारत ने हर तरीके से पाकिस्तान को नाराजगी भरा संदेश देने की कोशिश की. साथ ही यह जता भी दिया कि अब किसी भी रूप में पाकिस्तान के साथ विनम्र रुख नहीं अपनाया जाएगा. केस की सुनवाई के पहले दिन पाकिस्तान के दल ने आईसीजे में भारतीय अधिकारियों से हाथ मिलाने और बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भारतीय दल की तरफ से कोई भाव नहीं दिया गया. ऐसे ही दो वाकये पहले दिन की सुनवाई के दौरान देखने को मिले.
दरअसल, जिस वक्त सीनियर लॉयर हरीश साल्वे कोर्ट में भारत का पक्ष रख रहे थे, ठीक उसी वक्त आईसीजे के जजों के पैनल के अध्यक्ष अब्दुल कावी अहमद युसूफ ने दस मिनट का कॉफी ब्रेक लिए जाने की बात कही. इसे हरीश साल्वे ने पूरी विनम्रता के साथ स्वीकार कर लिया. इस दौरान सबसे दिलचस्प वाकया उस वक्त देखने को मिला, जब पैनल में शामिल सभी जज कोर्ट रूम से बाहर चले गए और उस वक्त हरीश साल्वे भारतीय दल के सदस्यों के साथ बात कर रहे थे.
ठीक उसी वक्त पाकिस्तानी वकील खावर कुरैशी पीछे से साल्वे के पास आए और उनसे कुछ पूछने की कोशिश करने लगे. उनका हाव भाव ही बता रहा था कि इस दौरान वो थोड़े नर्वस थे. वो हरीश साल्वे का ध्यान अपनी तरफ खींचना चाहते थे और इसके लिए वो एक बार नहीं, बल्कि दो बार उनके पास आए. लेकिन साल्वे ने इशारे के साथ उन्हें यह संदेश देने की कोशिश की कि इस बार दुनिया की सबसे बड़ी अदालत में उनकी कोई बात नहीं सुनी जाएगी.
वहीं, इससे पहले भारतीय राजनयिक ने पाकिस्तानी अधिकारी से हाथ नहीं मिलाया, बल्कि उन्हें ‘हाथ जोड़कर’ नमस्ते किया. जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव के बीच जाधव मामले की सुनवाई सोमवार को आईसीजे के मुख्यालय में शुरू हुई थी. पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी द्वारा किए गए हमले में 41 सीआरपीएफ के जवान शहीद हो गए.
सुबह सुनवाई से पहले, पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल अनवर मंसूर विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव दीपक मित्तल के पास गए और उनसे हाथ मिलाना चाहा, लेकिन मित्तल ने उनसे हाथ नहीं मिलाया बल्कि उन्हें ‘हाथ जोड़कर’ नमस्ते किया.
मित्तल ने पाकिस्तान के विदेश दफ्तर के प्रवक्ता और दक्षिण एशिया एवं दक्षेस के महानिदेशक मोहम्मद फैसल को भी ‘हाथ जोड़कर’ नमस्ते किया. जाधव भारतीय नौसेना से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं. उन्हें बंद कमरे में सुनवाई के बाद अप्रैल 2017 में ‘जासूरी और आतंकवाद’ के आरोप में एक सैन्य अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी.