साल 1991 की बात है. भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी गांधीनगर से चुनाव लड़ने आए थे. नामांकन के वक्त नरेंद्र मोदी आडवाणी के साथ बैठे थे. पीछे एक कोने में अमित शाह खड़े थे. 28 साल बाद गांधीनगर की सियासत बिल्कुल बदल गई है. भाजपा के सर्वोच्च नेता माने जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी अब हाशिए पर हैं और जिला स्तर की राजनीति करने वाले अमित शाह अब भाजपा के दूसरे सबसे ताकतवर नेता बन गए हैं. इसलिए जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा उम्मीदवारों की लिस्ट के नाम बोलने शुरू किए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद दूसरा नाम अमित शाह का ही था, तीसरे नंबर पर राजनाथ सिंह और चौथे नंबर पर नितिन गडकरी आए.
भाजपा की चुनाव समिति से जुड़े एक बड़े नेता की मानें तो लालकृष्ण आडवाणी का टिकट कटना तय था. उनको तर्क दिया गया कि वे इस वक्त 91 साल के हैं और अगली लोकसभा का कार्यकाल पूरा होते वक्त उनकी उम्र 96 साल की हो जाएगी, सो उम्र को देखते हुए उन्हें सक्रिय सियासत से संन्यास लेना चाहिए. इसके बाद भाजपा के कुछ नेता चाहते थे कि आडवाणी की जगह उनकी बेटी प्रतिभा या बेटे जयंत को गांधीनगर से टिकट दिया जाए. जयंत आडवाणी इस बाबत कुछ बड़े नेताओं से भी मिले. भाजपा के कोर ग्रुप में एक ऐसी भी राय थी कि अगर आडवाणी की जगह सीधे अमित शाह को टिकट मिल गया तो कांग्रेस सीधे कहेगी कि भाजपा ने अपने बुजुर्ग नेता का निरादर किया और अमित शाह की उनकी सीट दे दी.
भाजपा संगठन से जुड़े एक बड़े पदाधिकारी कहते हैं, ‘शुरू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आडवाणी का टिकट काटकर अमित शाह को उसी सीट से लड़ाने के लिए तैयार नहीं थे. पहले नरेंद्र मोदी चाहते थे कि अमित शाह भाजपा का चुनाव प्रचार देखें और लोकसभा चुनाव न लड़ें. लेकिन अमित शाह मन बना चुके थे. जब चुनाव समिति की बैठक के बाद दोनों नेता करीब 50 मिनट तक अकेले में मिले तो ज्यादातर चर्चा गांधीनगर की ही हुई. सुनी-सुनाई है कि अमित शाह ने गांधीनगर सीट पर चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया था और इसलिए गुजरात से उनका ही नाम भेजा गया था.
आखिरकार जब अमित शाह नहीं माने तो संघ से आए रामलाल को आडवाणी के घर भेजा गया. लगातार दो दिन रामलाल आड़वाणी के घर गए. उनसे गुजारिश की गई कि वे अपनी तरफ से एक बयान जारी कर दें. भाजपा की कोर टीम चाहती थी कि आडवाणी खुद सियासत से संन्यास लेने का एलान करें जिससे अमित शाह को टिकट देने का रास्ता साफ हो जाए. यही वजह थी कि लिस्ट तैयार होने के बाद भी लिस्ट को सार्वजनिक करने के लिए दो दिन का वक्त लगा. आखिरकार होली की देर शाम लिस्ट का ऐलान कर दिया गया और अमित शाह को गांधीनगर से टिकट दे दिया गया.
अमित शाह के करीबी नेताओं और पत्रकारों का अलग नज़रिया है. अमित शाह के नाम का एलान होने से पहले ही उनके करीबी कुछ खास पत्रकारों ने अपने ट्विटर हैंडल पर खबर ब्रेक करनी शुरू कर दी थी. गांधीनगर की सीट की महत्ता को बताया जा रहा था. दरअसल भाजपा में गांधीनगर सिर्फ एक सीट नहीं बल्कि पंरपरा मानी जाती है. जब आडवाणी नई दिल्ली और गांधीनगर दोनों सीटों से चुनाव जीते तो उन्होंने गांधीनगर सीट को अपने पास रखा. इसके बाद जब आडवाणी का नाम हवाला में आया तो उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया और इस सीट से अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव लड़े. इसके बाद वाजपेयी प्रधानमंत्री बने. बाद में आडवाणी ने इस सीट पर वापसी की और गृह मंत्री और फिर उपप्रधानमंत्री पद तक पहुंचे.
अमित शाह के एक करीबी पत्रकार कहते हैं कि अब भाजपा अध्यक्ष सरकार में भी नंबर दो पद पर रहना चाहते हैं, इसलिए राज्यसभा की जगह उन्होंने सीधे लोकसभा का चुनाव लड़ने का फैसला किया है. सीट गांधीनगर इसलिए चुनी गई क्योंकि अटल-आडवाणी के दौर में अटल उत्तर प्रदेश से संसद पहुंचते थे और आडवाणी गुजरात के गांधीनगर से. एक पत्रकार के शब्दों में ‘अगर मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बने तो अमित शाह की दावेदारी गृह मंत्रालय पर हो सकती है.’
लेकिन संघ के एक प्रचारक तजुर्बे के आधार पर बताते हैं कि गांधीनगर से गृह मंत्रालय की राह इतनी आसान नहीं होने वाली. उनके मुताबिक अभी के हालात में यह संभव नहीं है कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री दोनों गुजराती हों, इसलिए गांधीनगर से चुनाव जीतने के बाद ऐसा भी हो सकता है कि अमित शाह धीरे-धीरे ‘आज के आडवाणी’ बन जाएं.