मुख्यमंत्री पद भी काफी जद्दोजहद के बाद मिला था
रजेश श्रीवास्तव
सपा-बसपा और रालोद के गठबंधन की बुरी तरह पराजय से यह साफ हो गया है कि राजनीतिक पारी ख्ोलने में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पूरी तरह फेल हो गये हैं। अब तक के सभी चुनाव परिणामों से पूरी तरह साफ हो गया है कि अखिलेश यादव राजनीतिक पारी में सफल नहीं हो सके।
अखिलेश यादव जब 2०12 में मुख्यमंत्री बनाये गये थ्ो उसके पहले समाजवादी पार्टी ने अखिलेश यादव को लक्ष्य करके चुनाव नहीं लड़ा था। उस चुनाव में अखिलेश प्रदेश अध्यक्ष जरूर थ्ो लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में मुलायम सिंह यादव का नाम ही प्रचलन में था। भारी भरकम बहुमत के बाद उत्पन्न हुई विषय परिस्थितियों में अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री पद की कुर्सी देनी पड़ी। हालांकि इसके लिए खुद मुलायम सिंह यादव मन से तैयार नहीं थ्ो। लेकिन शिवपाल यादव और अन्य लोगों का कड़ा विरोध होेने के बावजूद उन्हें अख्ोिलश यादव को मुख्मयंत्री पद देना पड़ा।
मुख्यमंत्री बनने के तीन वर्ष बाद ही उन्होंने समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए पूरी पार्टी में तहस-नहस कर डाला। किसी तरह अपना कार्यकाल पूरा किया तो अगले लोकसभा चुनाव में पूरी पार्टी की मंशा ही नहीं बल्कि अपने पिता को भी दरकिनार कर कांग्रेस से समझौता कर लिया। इसके बावजूद दो लड़कों का साथ सूबे की जनता ने पूरी तरह नकार दिया और वह गिनी-चुनी सीट पर सिमट गये।
बीते लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने नया समीकरण गढ़ा और विधानसभा चुनाव में अपने चाचा का ही विरोध कर उनका टिकट भी काट दिया और अपने मनमाफिक लोगों को टिकट दिया लेकिन विधानसभा चुनाव में पूरी तरह साफ हो गये । अखिलेश यादव ने इसके बावजूद कोई सबक नहीं लिया और मुख्यमंत्री न रहने के बावजूद खुद को कभी उन्होंने मुख्यमंत्री पद से कम नहीं समझा।
2०19 के लोकसभा चुनाव में जब चुनाव लड़ने की बारी आयी तो अपने पिता व संरक्षक मुलायम सिंह यादव की राय को दरकिनार कर उन्होंने अपनी धुर विरोधी बसपा से समझौता कर लिया। बसपा वही पार्टी थी जिससे लड़कर मुलायम सिंह यादव ने पार्टी खड़ी की थी। उसके विरोध से ही मुलायम को ताकत मिलती थी। लेकिन सारे समीकरणों को धता बताते हुए उन्होंने अपनी धुर विरोधी बसपा से इतना झुक कर समझौता किया कि जो तुमको हो पसंद वही बात करेंगे और परिणाम सबके सामने है। इतना जरूर हुआ कि इस समझौते से बसपा को जरूर सियासी लाभ हुआ और पार्टी शून्य से बढ़कर दर्जन भर सीटों तक पहुंच गयी और सपा खुद दहाई का आंकड़ा नहीं छू सकी। इस समीकरण में भी वह पूरी तरह फेल हो गये। अखिलेश की राजनीतिक पारी का अब तक की अवधि का आकलन करें तो साफ होता है कि वह राजनीतिक बाजीगरी मे पूरी तरह असफल हुए हैं।