लखनऊ। लोकसभा चुनाव के नतीजों के महज 12 दिन बाद उत्तर प्रदेश में बीएसपी और एसपी का महागठबंधन टूट गया. सुबह करीब 11 बजे मायावती ने बयान जारी करते हुए एलान किया कि बीएसपी यूपी में 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में अकेले लड़ेगी. मायावती का दावा है कि बीएसपी को एसपी के वोट नहीं मिले. सिर्फ इतना ही नहीं मायावती ने समाजवादी पार्टी की अंदरुनी कलह को भी लोकसभा चुनाव में हार की वजह बता दिया. मायावती के गठबंधन के बाहर जाने के फैसले पर अखिलेश यादव ने कहा कि समाजवादी पार्टी भी 11 सीटों पर पार्टी से राय मशवरा करके अकेले चुनाव लड़ेगी. अगर रास्ते अलग-अलग हैं तो उसका भी स्वागत और सभी लोगों को बधाई. बता दें कि 24 साल बाद बीएसपी और एसपी एक साथ चुनाव लड़े. आम चुनाव में इस महागठबंधन में बीएसपी को 10 और एसपी को 5 सीट भी मिली.
बता दें कि यह पहला मौका नहीं जब बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने किसी गठबंधन को छोड़ा है. मायावती अलग अलग समय पर ‘अपने फायदे’ के हिसाब के गठबंधन करती और तोड़ती रही हैं. फिर चाहे वो गेस्ट हाउस कांड के बाद मुलायम सिंह का साथ छोड़ना हो या फिर अपना 6 महीने का कार्यकाल पूरा करने के बाद कल्याण सिंह की सरकार से समर्थन वापस लेना हो. गठबंधन छोड़ने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या मायावती एक बार फिर ‘मौकापरस्ती’ कर रही हैं. हम आपको बता रहे हैं कि कब-कब मायावती ने ‘अपने फायदे’ की राजनीति के लिए दूसरों का साथ छोड़ दिया.
सबसे पहले बात सबसे नए गठबंधन के बनने और टूटने की
अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद बड़ा फैसला करते हुए साल 2018 में गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव के लिए मायावती की बीएसपी से गठबंधन कर लिया. उपचुनाव में गठबंधन ने काम भी किया और दोनों सीट पर जीत दर्ज की. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए एसपी, बीएसपी और आरएलडी ने गठबंधन किया. जनवरी में गठबंधन ने सीट शेयरिंग फॉर्मूले का का एलान किया, बीएसपी 38 और एसपी 37 सीट पर लड़ी. बाकी सीट आरएलडी के खाते में गई. चुनाव के नतीजे जैसे दोनों पार्टियों ने सोचे वैसे नहीं रहे, 19.26 प्रतिशत वोट प्रतिशत के साथ बीएसपी के खाते में 10 सीटें आईं तो एसपी को पांच सिर्फ और सिर्फ 17.96 प्रतिशत वोट मिला. आरएलडी को 1.67 प्रतिशत वोट मिला लेकिन कोई सीट नहीं मिली. आखिरकार मायावती ने अखिलेश यादव पर सवाल उठाते हुए आज गठबंधन से बाहर होने का एलान कर दिया.
2018- कर्नाटक में तस्वीर सोनिया के साथ लेकिन गठबंधन नहीं….
22 मई 2018 को कर्नाटक लोकसभा चुनाव के नतीजे आए, कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन ने सत्ता संभाली और एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने. 23 मई 2018 को विपक्ष के लगभग सभी दिग्गज नेता एकता दिखाने के उद्देश्य से कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथग्रहण में पहुंचे. इस शपथग्रहण में मायावती और सोनिया गांधी की गले मिलने वाली तस्वीर ने सबका ध्यान खींचा. सोनिया गांधी और मायावती के व्यवहार में इतनी नजदीकी देखकर माना जा रहा था कि बीएसपी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ देगी. लेकिन मायावती ने तस्वीर भले ही सोनिया गांधी के साथ खिंचवाई हो लेकिन गठबंधन नहीं किया.
1993- 24 साल पहले गेस्ट हाउस कांड के बाद मायावती ने छोड़ा मुलायम का साथ
24 साल पहले 1993 में मायावती और मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा. इस चुनाव में ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम’ का नारा चला और गठबंधन सत्ता में आया. बीएसपी ने 164 सीटों पर चुनाव लड़कर 67 पर जीत दर्ज की वहीं समाजवादी पार्टी 256 सीट पर लड़ी और 109 सीटें अपने खाते में डालीं. सरकार बनी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने, दो साल सरकार भी चली. मायावती से ज्यादा लंबे समय तक शायद ये देखा नहीं गया. 1 जून 1995 को वो मुलायम सरकार से समर्थन वापस लेने की तैयारी करने लगीं, जिसकी भनक मुलायम सिंह को लग गयी और उसके बाद ही 2 जून को लखनऊ में वो गेस्ट हाउस कांड हुआ जिसके बाद एसपी-बीएसपी के रास्ते अलग हो गए.
1995- जब मायावती ने पहली बार छोड़ा बीजेपी का साथ
गेस्ट हाउस कांड के एक दिन बाद तीन जून 1995 को मायावती बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बनीं. बीजेपी की मदद से मुख्यमंत्री बनने के बावजूद मायावती ने सार्वजनिक रूप से बीजेपी नेता कल्याण सिंह पर हमला बोला. मायावती के लगातार जारी हमलों के बीच बीजेपी ने मायावती की सरकार से समर्थन वापस ले लिया.
1997- 6 महीने कुर्सी पर रहने के बाद कल्याण सिंह से समर्थन वापस लिया
दो साल बाद मायावती और बीजेपी एक बार फिर साथ आए, मायावती बीजेपी की मदद से फिर मुख्यमंत्री बनीं. इस बार बीजेपी और मायावती के बीच 6-6 महीने के लिए सीएम की कुर्सी पर बात फाइनल हुई. मायावती ने छह महीने बाद अपने पद इस्तीफा दे दिया और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने. मायावती ने कल्याण सिंह को एक महीने भी ढंग से काम नहीं करने दिया. उन्होंने कल्याण सिंह को दलित विरोधी बताते हुए उनके खिलाफ अभियान छेड़ दिया. 10 अक्टूबर 1997 को बीएसपी ने कल्याण सिंह सरकार से सर्मथन वापस ले लिया. इसके बाद कल्याण सिंह ने अपने रानीतिक कौशल का इस्तेमाल करते हुए कांग्रेस, बीएसपी, जनता दल और बीकेकेपी के कई विधायकों को तोड़ कर सदन में बहुमत साबित कर दिया और सरकार बचा ली.
1999- जब मायावती ने अटल बिहारी वाजपेयी से किया वादा नहीं निभाया
बीएसपी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से वादा किया कि विश्वास प्रस्ताव के दौरान बीएसपी सरकार का समर्थन करेगी. सदन में जब विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा शुरू हुई और मायावती जैसे ही बोलने के लिए खड़ी हुईं उन्होंने कहा कि वो सरकार के समर्थन में नहीं हैं. बीजेपी की सरकार गिर गई.
2008- केंद्र में यूपीए सरकार से समर्थन वापस लिया
2008 में बीएसपी चीफ मायावती ने केंद्र की कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार से अपनी पार्टी का समर्थन वापस ले लिया. उस वक्त लोकसभा में बीएसपी के 17 मेंबर थे.