राजेश श्रीवास्तव
अभी बीते सप्ताह दो ऐसे मामले सामने आये जिससे पता चलता हैं की मोदी सरकार मीठा मीठा गप और कड़वा कड़वा थू वाली कहावत पर कदमताल करती दिख रही है. एक अमेरिकन संस्था की अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक संस्था की रिपोर्ट को भारत ने यह कहकर ख़ारिज कर दिया की एक विदेशी संस्था को हमारे नागरिकों के संविधान प्रदत्त अधिकारों की स्थिति पर टिप्पणी करने का कोई औचित्य नहीं हैं जबकि दो दिन पहले ब्रिटेन की पत्रिका ने जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दुनिया के सबसे ताकतवर शख्स के रूप मे एक सर्वे कराकर घोषित किया तो पूरी सरकार ने इस पर जश्न मनाया.
दरअसल ब्रिटेन ने एक सर्वे कराया था जिसमे ऑनलाइन वोटिंग होनी थी और 25 लोग शामिल थे. इस फाइनल लिस्ट मे नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति पुतिन, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और चीन के शी जिनपिंग का नाम रहा. इस दौड़ मे मोदी जी ने सबको पछाड़ कर सबसे आगे जगह बनाई. इस तरह के सर्वे को इसी से समझा जा सकता हैं की भारत की जनसंख्या सबसे अधिक हैं और अभी क्या 2027 तक तो भारत जनसंख्या के लिहाज से दुनिया मे सबसे अव्वल रहने वाला हैं तब तो इस तरह के सर्वे मे हर बाजी भारत के ही हाथ लगेगी क्योंकि इसका पैमाना सिर्फ ऑनलाइन आवेदन वोटिंग रखा जाता हैं. इस खबर को प्रमुखता से प्रकशित भी किया गया और सरकार ने प्रचारित भी किया और करना भी चाहिए हमारे देश का प्रधानमंत्री दुनिया का सबसे ताकतवर शख्स चुना गया लेकिन दुख तब होता हैं जब दूसरी विदेशी रिपोर्ट को सिर्फ विदेशी मंत्रालय ने इसलिए ख़ारिज कर दिया क्योंकि वो सरकार की सेहत के लिए मुफीद नहीं दिखती. दरअसल रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में गोहत्या के नाम पर हिंसक हिंदू चरमपंथी समूहों द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों, विशेष रूप से मुसलमानों, के खिलाफ हमला साल 2018 में भी जारी रहा।
सरकार गोरक्षकों द्वारा किए गए हमले को लेकर कार्रवाई करने में विफल रही। रिपोर्ट के मुताबिक नवंबर 2018 तक भीड़ द्वारा ऐसे 18 हमले हुए और साल भर के भीतर आठ लोग मारे गए। कुछ गैर सरकारी संगठनों के अनुसार, अधिकारियों ने अक्सर अपराधियों पर कार्रवाई होने से बचाया। अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों एवं राजनीतिक दलों के सदस्यों ने भी ऐसे कदम उठाए हैं जिसकी वजह से मुस्लिम प्रथाएं और संस्थान प्रभावित हुए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, भारत के ऐसे शहरों का नाम बदलने का प्रस्ताव जारी रहा, जिनका नाम मुस्लिमों से जुड़ा हुआ है। विशेष रूप से इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज रखा गया।
रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि सत्तारूढ़ पार्टी के कुछ अधिकारियों ने अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भड़काऊ भाषण दिए । धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट में दिए गए तथ्यों को झुठलाया भी नहीं जा सकता क्योंकि इसमें बीते छह फरवरी को लोकसभा में भारत के गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों का हवाला ही दिया गया है, जिससे पता चलता है कि 2015 से 2017 के बीच सांप्रदायिक घटनाओं में नौ फीसदी की वृद्धि हुई है। साल 2017 में सांप्रदायिक हिंसा के 822 मामले सामने आए, जिसमें 111 लोगों की मौत हुई और 2,384 लोग घायल हो गए थे।
गौरतलब है कि अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा तैयार की गई अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट हर देश में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति का वर्णन करती है।
अभी बीते चुनाव की ही बात हैं खुद प्रधानमंत्री मोदी और उनके कई मंत्रियो को प्रचार के दौरान भीड़ की हिंसा के आरोपियों को माला पहनाते, मुस्लिम सांसदों के शपथग्रहण पर जयश्रीराम का नारा लगाते, बात-बात पर पाकिस्तान चले जाने की घुड़की देते देश ने देखा है। जो हालात 2014 से 2019 तक थे, वैसे ही 2019 में आगे भी बने रहेंगे, ऐसी आशंका बलवती है। अगर मोदीजी सचमुच दुनिया के सबसे ताकतवर नेता बनना चाहते हैं, तो उन्हें इस देश की ताकत यानी सर्वधर्म समभाव और विविधता को सच्चे अर्थों में बचाए रखना होगा।
प्रधानमंत्री को चाहिए की वो अपने सिपाहसालारो को यह सन्देश दें की अगर वो एक विदेशी रपट को स्वीकार कर रहै हैं तो दूसरी को ख़ारिज करते वक्त उचित कारण भी बताये वरना सिर्फ जग हंसाई ही होगी सिर्फ मीठा मीठा गप करने से नहीं काम चलेगा कड़वाहट भी स्वीकार करनी ही होगी