नई दिल्ली। चीन पर शिनजियांग में दस लाख मुसलमानों को हिरासत में लेने और उइगरों को सताए जाने का आरोप है। इसी संदर्भ में 22 देशों के राजदूतों ने चीन की नीतियों की आलोचना करते हुए इस सप्ताह संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद को एक पत्र लिखा। दरअसल, उइगर एक तुर्की-मुस्लिम जातीय समूह हैं, जो मुख्यतः चीन के प्रशासनिक क्षेत्र शिनजियांग में रहते हैं। इसके अलावा मंगोलिया, रूस, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और भारत में भी इनकी थोड़ी-बहुत आबादी है। चीन के शिनजियांग स्वायत्त क्षेत्र में अधिकारियों और स्थानीय उइगर आबादी के बीच संघर्ष का एक लंबा इतिहास रहा है।
मानवाधिकार निगरानी संस्था (ह्यूमन राइट्स वॉच) के अनुसार, 22 पश्चिमी देशों ने एक बयान जारी कर चीन से अनुरोध किया है कि वो पश्चिम शिनजियांग क्षेत्र में उइगर और अन्य मुसलमानों के ख़िलाफ़ बड़े स्तर पर मनमाने ढंग से की गई नज़रबंदी समेत अन्य उल्लंघनों को ख़त्म करे। इस पत्र पर ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, बेल्ज़ियम, कनाडा, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, आइसलैंड, आयरलैंड, जापान, लातविया, लिथुआनिया, लग्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, न्यूज़ीलैंड, नॉर्वे, स्पेन, स्वीडन, स्विटजरलैंड और ब्रिटेन हैं। ध्यान देने की बात यह है कि इन देशों में एक भी ऐसा मुस्लिम देश शामिल नहीं है, जिसने चीन के ख़िलाफ़ प्रतिक्रिया-स्वरूप इस पत्र पर हस्ताक्षर किए हों।
वहीं दूसरी तरफ़ सऊदी अरब, रूस और 35 अन्य देशों ने पश्चिमी देशों की आलोचना के विपरीत शुक्रवार को शिनजियांग के पश्चिमी क्षेत्र में चीन की नीतियों का समर्थन करते हुए संयुक्त राष्ट्र को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में इन 35 देशों को चीन की शिनजियांग नीति से कोई परहेज़ नहीं है बल्कि इसके उलट वे उइगर मुस्लिमों को “उग्रवाद से दूर करने (deradicalization) और व्यवसायिक शिक्षा देने” वाली चीन की नीतियों के समर्थन में हैं।
इन 35 देशों में शामिल सऊदी अरब और रूस के साथ-साथ कई अफ्रीकी देशों, उत्तर कोरिया, वेनेजुएला, क्यूबा, बेलारूस, म्यांमार, फिलीपींस, सीरिया, पाकिस्तान, ओमान, कुवैत, कतर, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन समेत कई इस्लामिक मुल्कों के राजदूतों ने चीन की नीतियों के समर्थन में पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।
शिनजियांग में उइगर मुस्लिम आबादी के ख़िलाफ़ कठोर नीतियों को अपनाने के लिए चीन संयुक्त राष्ट्र की निंदा का सामना कर रहा है। ख़बर यह भी है कि चीन अपने क़ैदखानों में उइगर मुसलमानों को कथित रूप से उनकी परंपराओं को भूलने, इस्लामी प्रथाओं की निंदा करने और शी जिनपिंग की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफ़ादार बनने को मजबूर करता है। हालाँकि चीन इस तरह के मानवाधिकार उल्लंघनों से इनकार करता है और इन्हें चरमपंथ से लड़ने और रोज़गार योग्य कौशल सिखाने के उद्देश्य वाले प्रशिक्षण स्कूल बताता है।
पाकिस्तान, ईरान और सऊदी अरब जैसे कई इस्लामिक देश ऐसे देश हैं जिन्होंने मुसलमानों पर हो रहे इन कथित अत्याचारों पर चुप्पी साध रखी है। इसकी वजह शायद चीन का इन देशों में भारी निवेश है। चीनी निवेश इन देशों को आर्थिक संकट से उबारने में बहुत महत्वपूर्ण है। इसी के चलते ये इस्लामिक देश चीन की नीतियों का विरोध करने की बजाए उसके समर्थन में खड़े नज़र आते हैं।