नई दिल्ली। एक कहानी, एक दंतकथा अकसर वकालत में सुनने को मिलती है- एक चतुर लेकिन बौखल वकील बुढ़ापे में यह भूल गया कि किस तरफ़ से बहस करने की फीस मिली है, और जाकर अपने ही मुवक्किल को कातिल साबित करने वाली दलीलें दे आया। तृणमूल के सांसद और हम सबके बचपन के ‘बॉर्नवीटा क्विज़ मास्टर’ डेरेक ओ’ब्रायन यही मूर्खता आज राज्य सभा में कर आए हैं।
नागरिकता विधेयक की मुख़ालफ़त करने सदन में खड़े हुए डेरेक ओ’ब्रायन ने वे सभी तर्क दे डाले, जिन्हें सुनने के बाद नागरिकता विधेयक ज़रूरी लगने लगे। और जैसे अपने ‘बॉर्नवीटा’ वाले दिनों में कठिन सवालों से ‘बच्चों’ को लाजवाब कर देते थे, वैसे ही उन्होंने भाजपाईयों की ‘बोलती बंद’ कर दी। कुछ ‘कंस्पिरेसी थ्योरी’ वाले ऐसा भी कह सकते हैं कि भाजपाईयों को अमित शाह ने चुप करा दिया होगा कि ‘दादा’ हमारे साइड से बैटिंग कर रहे हैं, याद मत दिलाना, लेकिन इस दावे के पक्ष में फ़िलहाल कोई सबूत नहीं आए हैं।
‘बंगाली धर्म’ पंजाबी मुस्लिम कैसे जाने?
डेरेक के भाषण में विरोधाभास शुरू से दिखा। दुनिया के सबसे बड़े विभाजन (मज़हबी विभाजन) को नकारने की बात करने वाले वे उसी की आड़ में बंगाली विघटनवाद फैलाने की कोशिश करते, यह संदेश देने की कोशिश करते नज़र आए कि बंगाल की पहचान भारत से अलग है, बंगाली संस्कृति वृहत्तर हिन्दू संस्कृति का हिस्सा नहीं है। और इसी के साथ बंगाली हिन्दुओं की संस्कृति को बंगाली मुस्लिमों की संस्कृति से एकरूप करते भी वे दिखे। इसके लिए उन्होंने अपने भाषण का पहला हिस्सा विशुद्ध बांग्ला में रखा, ताकि उसे अन्य-भाषी लोगों के लिए अस्पष्ट करके उन्हें बिन-बोले यह संदेश दिया जा सके कि अगर तुम बांग्लादेशी मुसलमानों को अपना नहीं मानोगे, तो बंगाली हिन्दू भी तुम्हारा अपना नहीं रहेगा।
अपने भाषण के इसी विभाजनकारी हिस्से में उन्होंने कहा, “बंगाली धर्मो बंगाली ही जाने, बंगाली ही जाने।” हालाँकि यह पूरी तरह सत्य नहीं है, क्योंकि बंगाल का सबसे बड़ा धार्मिक उत्सव दुर्गा/शक्ति पूजा “जूपी के भईया” भगवान श्री राम का शुरू किया हुआ है, बंगाली संस्कृति के सबसे बड़े लेखकों में एक कृत्तिबास ओझा वर्तमान बिहार के निवासी थे, कन्नौजी ब्राह्मण बंगाली ब्राह्मणों के पूर्वज रहे हैं, लेकिन मैं उनकी बात फिर भी मान लेता हूँ। अब अगर राम, दुर्गा, सरस्वती में अनन्य आस्था रखते हुए भी मैं गैर-बंगाली होने के चलते ‘बंगाली धर्मो’ को नहीं जान सकता, तो बांग्लादेशी मुसलमान कैसे जान जाएगा? वह तो न ही इस्लाम की बुतशिकनी शिक्षाओं के चलते ‘धर्मो’ की आस्था को पहचानता है, और न ही भारत की बहुलतावादी संस्कृति में न रहने और बांग्लादेश की कट्टरता में जीने के कारण मज़हबी सहिष्णुता से परिचित है।
“बंगाली के देशप्रेम शिखाबेन ना”- इसीलिए तो उनकी संख्या बचाकर रखनी है
अपने भाषण में आगे डेरेक ओ’ब्रायन दिसंबर महीने के राष्ट्रवादी बंगाली ‘आइकनों’ बाघा जतीन, खुदीराम बोस आदि से जुड़े होने का हवाला देते हैं। इसकी कोई ज़रूरत ही नहीं थी।
बंगाली देशप्रेम को याद करने वाले डेरेक को यह याद रखना चाहिए कि आखिर इस देश के राष्ट्रपिता बंगाली नहीं हैं। वो गुजराती हैं लेकिन पूरे देश के राष्ट्रपिता हैं। ठीक उसी तरह सुभाष बोस और स्वामी विवेकानन्द या महा-ऋषि श्री ऑरोबिन्दो सिर्फ बंगाल के नहीं हैं बल्कि पूरे देश के हैं।
डेरेक इस बिल को ‘बंगाली-विरोधी’ कैसे कह रहे हैं? उन्हीं के आँकड़ों (जो राज्य सभा के पटल पर रखे हैं, इसलिए मान कर चल रहा हूँ कि झूठे नहीं होंगे) के मुताबिक NRC के बाद जिन लोगों की नागरिकता पर खतरा है, उनमें से 60% बंगाली हिन्दू हैं। तो उन्हीं की नागरिकता, देशप्रेम बचाने के लिए तो नागरिकता विधेयक आ रहा है। उन्हीं की भारत में साझेदारी बचा कर रखने की बात नागरिकता विधेयक में है, जिनके पूर्वज डेरेक द्वारा उद्धृत बाघा जतीन, विवेकानंद, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि हैं।
उनका ‘नाज़ी जर्मनी’ नागरिकता विधेयक लाने वालों पर नहीं, इससे बाहर छोड़े गए लोगों पर लागू होता है
डेरेक ने इसके बाद नाज़ी जर्मनी से भारत की तुलना करने की कोशिश की। उन्होंने नाज़ी जर्मनी से भारत में समानताएँ गिनाने की कोशिश की। शायद उनके दिमाग में यह नहीं आया कि जिन बातों को वह भारत पर लागू करने के लिए इतना जोर लगा रहे हैं, वह बिना किसी ज़ोर-आजमाईश के उन देशों पर भारत से पहले और स्वतः लागू हो जातीं हैं, जिनके बहुसंख्यक मुस्लिमों की वह वकालत कर रहे हैं।
उदाहरण के तौर पर, NRC के ‘डिटेंशन कैम्पों’ को वह नाज़ी कंसन्ट्रेशन कैम्पों से जोड़ रहे हैं, जबकि अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में तो पूरे देश ही गैर-मुस्लिमों के लिए कमोबेश कंसन्ट्रेशन कैम्प बने हुए हैं- पाकिस्तान में किसी भी हिन्दू या ईसाई लड़की को दिन-दहाड़े उठा लिया जाता है और बलात्कार के बाद निकाह के लिए सरकारी अमला (पाकिस्तानी मुसलमानों के ही दबदबे वाला) मजबूर करता है, बांग्लादेश में अल्लाह के नाम पर नाक-मुँह बनाने पर भी गोली मारी जा सकती है, और अफगानिस्तान में तो अपने हिन्दू-बौद्ध इतिहास को मिटाने के लिए बामियान बुद्ध ही नहीं, गांधार सभ्यता, कुषाणों, शकों, हूणों आदि से जुड़े न जाने कितने स्मारक ही मिटा दिए गए।
नाज़ी “जर्मन खून”, फ़र्ज़ी ‘आर्यन नस्ल’ आदि को बचाने के लिए अपने ही देशों के नागरिकों की नागरिकता छीन रहे थे, लेकिन नागरिकता विधेयक का भारतीय नागरिकों से मतलब ही नहीं है। यह तो नागरिकता चाह रहे विदेशियों के बारे में है। हाँ, पाक-बांग्लादेश-अफ़ग़ानिस्तान में ज़रूर कई सारे कानून मुस्लिम और गैर-मुस्लिम नागरिकों में भेदभाव करते हैं। इसीलिए भारत उन नाज़ी-इस्लामी देशों के पीड़ितों को शरण देना चाहता है, और ये बता रहे हैं कि जिसने उन्हें वहाँ परेशान किया, उसे ही यहाँ भी आ कर वही दमनचक्र चलाने का मौका दे दिया जाए।
जिस नाज़ी “महा-झूठ” की बात डेरेक कर रहे हैं, वह ‘भारत खतरे में है’ नहीं, बल्कि ‘इस्लाम खतरे में है’ है। इसी महा-झूठ के बल पर मुसलमानों में कठमुल्लावादियों ने न केवल पाकिस्तान ले लिए, बल्कि इन तीनों देशों (पाक-बांग्लादेश-अफ़ग़ानिस्तान) में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार भी इसी झूठ के बल पर हो रहे हैं। और करने वाले वही हैं, जिन्हें डेरेक अत्याचार करने वालों के बराबर का हक देना चाहते हैं भारत की नागरिकता पाने का।
मंदिर तोड़ कौन रहा है?
एक अच्छी बात हुई कि मंदिरों की ज़मीन पर शौचालय बनवाने वाले गिरोह से डेरेक उस टोली में आ गए हैं, जिन्हें मंदिरों की चिंता होती है। वे बताते हैं कि मोदी के गुजरात में 80 मंदिर क्षतिग्रस्त हुए हैं, राजस्थान में 104 हुए, वगरैह-वगरैह। बिलकुल गलत बात है, और इसके लिए सजा तो देनी ही चाहिए- डीएम से लेकर पीएम को। चूँकि डीएम तुरंत उपलब्ध हो सकता था रोकने के लिए, इसलिए उसे निलंबित किया जाना चाहिए, और सीएम को एक महीने व पीएम को एक दिन की सैलरी खुद से जुर्माने के रूप में किसी धार्मिक संस्था को दान देनी चाहिए।
लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि मंदिर तोड़ कौन रहा है? हिन्दू? शक्ति मंदिर वैष्णव तोड़ रहे हैं, जैन मंदिर बौद्ध तोड़ रहे हैं, या कोई अन्य समुदाय विशेष इन सभी के मंदिर तोड़ रहा है? मंदिरों के तोड़े जाने, अपवित्र किए जाने की घटनाएँ बढ़ेंगी डेरेक की बातें मान लेने से, या घटेंगी?
आपका परिवार मुस्लिम न बनता अगर नागरिकता विधेयक होता
डेरेक अंत में सबसे बड़ा कारण दे देते हैं अपनी ज़िंदगी से ही इस नागरिकता विधेयक को ऐसे ही मान लेने का। वे बताते हैं कि कैसे उनके परिवार का जो हिस्सा पाकिस्तान-बांग्लादेश में रह गया, उसे ईसाई से मुस्लिम बनना पड़ा। अब डेरेक खुद बताएँ कि अगर उनके परिवार को पाक-बांग्लादेश में ऐसा करने पर मजबूर करने वाले विचार लिए हुए मुसलमान ही बंगाल में भी घुस आए, तो डेरेक ओ’ब्रायन को दानिश पठान बनने में कितना समय लगेगा?