दयानंद पांडेय
छपाक के फ़्लाप होने में सिर्फ़ और सिर्फ़ दीपिका पादुकोण का जे एन यू चले जाना है। जनमत आग की नदी है। बाज़ार और राजनीति जनमत से लड़ कर नहीं चलती। जैसे मुस्लिम वोट बैंक की क़ीमत कांग्रेस निरंतर चुकाती चल रही है। लेकिन कांग्रेस इस अफीम से बहुत चाह कर भी बाहर नहीं आ पा रही। वामपंथी चुनावी ज़मीन के नक्शे से साफ़ हो चुके हैं। रही बात दीपिका के छपाक की तो आप मुड़ कर देखिए कम से कम आमिर खान और शाहरुख़ खान का डर। ऐसा डरे कि बाज़ार में उन की फ़िल्में भी फुस्स हो गईं। लोग इन की फिल्मों से डर गए। अब यह लोग चुप हैं। मुसलसल चुप।
बौद्धिक जुगाली और वामपंथी हिपोक्रेसी ने जे एन यू जैसे महत्वपूर्ण शिक्षा संस्थान को जनमत के खिलाफ खड़ा कर दिया है। जे एन यू की पहचान और कैफ़ियत अब पूरी तरह बदल चुकी है। वामपंथियों के कट्टरपंथी रवैए ने मुस्लिम कट्टरपंथियों को भी पीछे छोड़ दिया है।
तय मानिए कि 5 मिनट के लिए ही सही , दीपिका अगर जे एन यू जा कर कन्हैया के मजमे में उपस्थित न हुईं होतीं तो फ़िल्म छपाक अगर सुपर डुपर नहीं तो फ़्लाप भी नहीं हुई होती। अभी दीपिका को और भी नुकसान मिलना शेष है। विज्ञापनों से भी अब वह गुम होने ही जा रही हैं। सिद्धू से भी बुरी गत होने जा रही है दीपिका पादुकोण की। कहा न , जनमत आग की नदी है। इस के खिलाफ जो गया झुलस गया। इक आग का दरिया है और डूब के जाना है , इश्क के मामले में ही मुफीद है। बाज़ार और राजनीति के लिए कतई नहीं।
दीपिका पादुकोण को एक बार दिल्ली के शाहीनबाग़ भी ज़रूर हो आना चाहिए। शायद जे एन यू जाने का आनंद यहां दोगुना हो जाए। जे एन यू जाने के उन्माद में छपाक जैसी महत्वपूर्ण फ़िल्म का जो तमाशा बनाया है दीपिका पादुकोण ने , अपने ही प्रोड्यूसर के पेट पर खुद ही लात मारा है , वह लाजवाब है।
(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)