नई दिल्ली। राजस्थान में सचिन पायलट की बगावत के बाद एक बार फिर से कांग्रेस के भीतर इस सवाल को जिंदा कर दिया है, कि आखिर राहुल गांधी के करीबियों को ही क्यों पार्टी छोड़ने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है, करीब आधा दर्जन ऐसे नाम हैं, जिन्होने पिछले कुछ सालों में पार्टी का साथ छोडा है, मनमोहन सरकार में भले युवा मंत्रियों की अच्छी संख्या थी, लेकिन संगठन में अभी भी युवा नेताओं पर वरिष्ठों के चलते पीछे रखा जाता है, जिससे नाराज युवाओं ने पार्टी से किनारा करना शुरु कर दिया है। राहुल गांधी ने जिन प्रदेश में युवा प्रभारी या अध्यक्ष बनाये, उनके अध्यक्ष पद से हटते ही वो लोग भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।
कई सचिवों के बेहतर प्रदर्शन से राहुल गांधी खुश थे, वो उन्हें प्रमोट करना चाहते थे, लेकिन उन लोगों को महासचिव नहीं बना सके, लिहाजा पार्टी के तमाम नेताओं को प्रभारी बनाकर खुश करने की कोशिश की, ज्योतिरादित्य सिंधिया से राहुल गांधी के रिश्ते सिर्फ पार्टी की वजह से नहीं थे, राहुल और सिंधिया एक साथ पढे हैं, लेकिन कांग्रेस के दो कद्दावर नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की वजह से सिंधिया कांग्रेस छोड़ने को मजबूर हुए।
हरियाणा में राहुल गांधी समर्थक अशोक तंवर को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन हुड्डा एंड फैमिली ने ना तो उन्हें कभी अध्यक्ष स्वीकारा और ना संगठन खड़ा करने दिया, लिहाजा अशोक तंवर पार्टी से अलग हो गये, झारखंड में डॉ. अजोय कुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, उन्होने भरपूर मेहनत की, लेकिन जूनियर सीनियर में उलझे अजोय कुमार कांग्रेस छोड़ आम आदमी पार्टी में चले गये, बिहार में अशोक चौधरी भी कुछ ऐसा ही नाम हैं, वो भी कांग्रेस छोड़ जदयू के साथ चले गये, तो मुंबई में संजय निरुपम के साथ भी वैसा ही हुआ।
पूर्वोत्तर में राज परिवार से ताल्लुक रखने वाले युवा नेता किरीट पीडी वर्मन जिन्होने कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कुछ ऐसा कह दिया, जो वरिष्ठों को अच्छा नहीं लगा, फिर एक सप्ताह में ही उनकी छुट्टी हो गई, गुजरात में अल्पेश ठाकोर भी राहुल गांधी की वजह से पार्टी में बड़े पद पर पहुंचे थे, लेकिन बाद में किनारे हो गये, मिलिंद देवड़ा तथा सिद्धू भी पार्टी में अपना वजूद तलाश रहे हैं।