मुंबई। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) अध्यक्ष शरद पवार ने शनिवार को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से उनके वरसा स्थित आवास पर जाकर मुलाकात की। समाचार एजेंसी पीटीआई सूत्रों के हवाले से बताया कि दोनों सत्ताधारी गठबंधन सहयोगियों के बीच बैठक करीब 30 मिनट तक चली। कोरोना वायरस की स्थिति के अलावा सत्ताधारी गठबंधन के समक्ष एक और अहम मुद्दा यह है कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से मराठा आरक्षण के क्रियान्वयन पर लगाई गई रोक पर कैसे प्रतिक्रिया दी जाए।
सूत्रों के मुताबिक शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार के पास तीन विकल्प हैं- एक अध्यादेश जारी करना, आदेश पारित करने वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर करना या अंतरिम रोक से छूट के लिए, वृहद संविधान पीठ के समक्ष याचिका दायर करना। संपर्क किए जाने पर पवार ने हालांकि यह नहीं बताया कि बैठक में क्या चर्चा हुई।
लोकसभा में कृषि क्षेत्र से जुड़े विधेयक के पारित होने पर पवार ने ‘पीटीआई’ से कहा कि उनके दल ने बहिर्गमन किया क्योंकि कृषि राज्य का विषय है और केंद्र बिना राज्यों की सहमति के यह महत्वपूर्ण विधेयक लेकर आया। इससे पहले, शिवसेना ने शनिवार को अर्थव्यवस्था, व्यापार और कृषि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत राजग सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए और आरोप लगाया कि सरकार हवाई अड्डों, एअर इंडिया तथा रेलवे के निजीकरण की ओर बढ़ रही है तथा किसानों के जीवन का नियंत्रण व्यापारियों और निजी क्षेत्र को दे रही है।
शिवसेना ने यह आरोप भी लगाया कि केंद्र ने अपने सहयोगियों, किसान संगठनों या विपक्षी दलों के साथ परामर्श किये बिना कृषि पर विधेयक पेश किए और केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफे से यह बात पूरी तरह साफ हो गई है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना के एक संपादकीय में लिखा है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के समय का राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) अलग था क्योंकि वे राजग के घटक दलों को सम्मान के साथ देखते थे और उनसे परामर्श करते थे।
इसमें लिखा है, ”शिरोमणि अकाली दल की सदस्य हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है। मोदी सरकार 2 किसान-विरोधी विधेयक लाई है और उन्होंने इसके विरोध में इस्तीफा दिया है। उनके इस्तीफे को कबूल कर लिया गया है। शिवसेना पहले ही राजग से बाहर हो चुकी है और अब अकाली दल ने कदम उठाया है।” शिवसेना ने कहा, ”वाजपेयी और आडवाणी के समय राजग के सहयोगी दलों को सम्मान, लगाव और विश्वास के साथ देखा जाता था। नीतिगत निर्णयों पर परामर्श होता था और भाजपा नेता सहयोगी दलों के विचारों को सुनते थे। उस समय बोले गए शब्दों का मान होता था।