दीप्रिंट वालो! ‘लव जिहाद’ हिन्दू राष्ट्र का आधार नहीं, हिन्दू बच्चियों को धोखेबाज मुस्लिमों से बचाने का प्रयास है

जयन्ती मिश्रा

‘लव जिहाद’ के नाम पर आज कल वामपंथी गिरोह ने एक नया एजेंडा चलाना शुरू किया है। अपने इस एजेंडे के तहत ये लोग इस बात को साबित करना चाहते हैं कि समाज में ऐसी कोई अवधारणा मौजूद ही नहीं है जो लव जिहाद की प्रमाणिकता को सिद्ध करे। ये मात्र सियासी फितूर है जिसे दक्षिणपंथियों ने फैलाया है और अब उनका (सेकुलर) समाज इससे प्रभावित हो रहा है।

इन लोगों का दावा है कि हिंदू इस लव जिहाद को इसलिए इतना गंभीर बता रहे हैं क्योंकि वह अंतर-धार्मिक प्रेम विवाह के विरुद्ध हैं। अब अंतर-धार्मिक प्रेम विवाह की परिभाषा बहुत व्यापक है इसलिए इसे केवल हिंदू-मुस्लिम तक सीमित कर देना कितना गलत है, ये बताने की जरूरत बिलकुल भी नहीं है।

हम बात करेंगे केवल मीडिया में प्रचलित लव जिहाद शब्द की परिभाषा पर जिसमें वास्तविकता में लव का नामों निशान तक नहीं होता। मौजूद होता है यदि कुछ, तो वो एक पैटर्न होता है, जिसे देखने समझने परखने के बाद ही उसे लव जिहाद का केस कहा जाता है। इस पैटर्न में मुस्लिम युवक पहले अपना नाम छिपाकर हिंदू लड़कियों से प्रेम का ढोंग करते हैं और फिर उन्हें अपने जाल में फँसाकर उनका धर्म परिवर्तन करवाते हैं। बाद में कभी खुद उसका रेप करते हैं तो कभी अपने ही रिश्तेदार से उसका गैंगरेप भी करवाते हैं। जरूरत न होने पर उसे मारने से भी गुरेज नहीं करते।

जैसे:

25 अगस्त को लव जिहाद का एक मामला यूपी के लखीमपुर से सामने आया था। इस केस में मोहम्मद दिलशाद ने एक दलित लड़की को अपने प्रेम जाल में फँसाया और अपने मंसूबे नाकाम होता देख उससे बलात्कार करके बेहरमी से मार डाला। दरअसल, दिलशाद को गुस्सा इस बात का था कि उसने जिस लड़की के साथ प्रेम जाल रचा, उसके घरवालों ने उसकी शादी कहीं और तय कर दी थी। पर दिलशाद चाहता था कि लड़की धर्म परिवर्तन करके उससे निकाह करे।

23 जुलाई को मेरठ के ही परतारपुर में लव जिहाद का वीभत्स चेहरा सामने आया था। प्रिया नाम की महिला को पहले शमशाद ने कुछ साल पहले अमित गुर्जर बनकर फँसाया और फिर हकीकत खुलने पर उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए कहने लगा। हालाँकि, प्रिया खुद को और अपनी बेटी को इन चीजों से बचाती रही। मगर, लॉकडाउन का फायदा उठाकर शमशाद ने दोनों को जान से खत्म कर दिया और घर में गड्डा खोद कर दफना दिया। इस केस का खुलासा प्रिया की सहेली चंचल के कारण पूरे 4 महीने बाद हुआ था।

अपने लेख में आगे हम ऐसे वीभत्स मामलों पर चर्चा जरूर करेंगे क्योंकि द प्रिंट में प्रकाशित हुए जैनब सिकंदर के लेख ने हिंदुओं पर आरोप लगाया है कि लव जिहाद के भूत के ईर्द गिर्द अपनी सोच को रखकर दक्षिणपंथी ‘हिंदू राष्ट्र’ के निर्माण की परिकल्पना कर रहे हैं। इस लेख का शीर्षक है, “राम मंदिर नहीं, ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून है हिंदू राष्ट्र का असली आधार।”

द प्रिंट पर प्रकाशित जैनब सिकंदर के लेख के शीर्षक से स्पष्ट है कि उनकी दिक्कत राम मंदिर से तो है ही लेकिन अब उसका कुछ किया नहीं जा सकता इसलिए हिंदू राष्ट्र के नाम से सेकुलरों को डराने के लिए वह लव जिहाद कानून का उपयोग कर रही हैं। वह इस कानून को हिंदू राष्ट्र का आधार बता रही हैं जबकि हकीकत यह है कि लव जिहाद कानून हिंदू राष्ट्र का आधार नहीं, बल्कि हिंदुओं को बचाने का प्रयास है।

यहाँ राजनीति और धर्म आपस में गड्डमड्ड नहीं हो जाएँगे यहाँ कानून बन जाने से न केवल इस्लामी कट्टरपंथ से अन्य धर्मों की रक्षा होगी बल्कि उन लड़कियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी, जिनका धर्मपरिवर्तन करवाने के बाद उन्हें मारकर फेंक दिया जाता है या समाज में ठोकरें खाने को मजबूर कर दिया जाता है।

लव जिहाद कोई काल्पनिक राक्षस नहीं है। ये वीभत्स हकीकत है। मेरठ में हुआ प्रिया का केस शायद जैनब ने पढ़ा ही नहीं या निकिता के साथ जो तौसीफ ने किया उससे वो आजतक अंजान हैं। राक्षस हैं ये जिन्हें इंसान बनाने के लिए लव जिहाद कानून के रूप में केवल एक रूपरेखा तैयार हो रही है। मुझे यकीन है कि कानून आने के बाद भी हम इससे जल्दी निजात नहीं पाएँगे। आखिर तीन तलाक के बाद कौन सा इन ‘प्रेमियों’ ने बीवियों को तलाक-तलाक-तलाक कहना छोड़ दिया है।

लेखिका चाहती हैं कि लव जिहाद की सच्चाई को स्वीकृति न मिले, तो क्या उनको चाहिए कि हिंदू लड़कियाँ उस बर्बरता की शिकार होती रहें जिसकी नींव धर्म परिवर्तन के साथ रख दी जाती है। जैनब के लेख में लिखा है;

“मोदी के भारत में एक नई फतह का परचम लहराया जा रहा है, यह हिंदू महिलाओं पर मुस्लिम मर्दों की फतह का परचम है; तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नज़रों से यह कैसे बच सकता है।”

आप खुद के लिए कि महिला पत्रकार के लिए ऐसे विवाह खुद जंग का विषय हैं, जिसमें उन्हें मुस्लिम पुरुषों की फतह चाहिए। अब जिनके मन में वाकई ‘जिहाद’ चलता होगा वो इसके लिए क्या नहीं कर गुजरते होंगे ये कल्पना से परे है।

उक्त वाक्य का मतलब क्या निकाला जाए, इसका निर्णय भी पाठक अपने विवेक पर करें। क्या इसका अर्थ यह नहीं है कि मुस्लिम मर्दों की हकीकत योगी सरकार से नहीं बच पाई या फिर ये निकालें कि अंतरधार्मिक विवाह का अर्थ लेखिका के लिए फतह का विषय तभी तक है जब तक हिंदू लड़की मुस्लिम परिवार को भागकर स्वीकार ले? क्या मुस्लिम महिलाओं का हिंदू युवकों से शादी करना अंतर-धार्मिक विवाह में नहीं आएगा।

तमाम केस हैं जब मुस्लिम महिलाओं ने हिंदू लड़कों से शादी की और बकायदा अपने मजहब के साथ अपनी पहचान बनाए रखते हुए जीवन व्यतीत किया। दूसरी ओर ऐसे सैंकड़ों मामले हैं जब हिंदू लड़की कई सपने लेकर मुस्लिम युवक के साथ जिंदगी शुरू करना चाहा लेकिन शुरुआत हुई कहाँ से? धर्म परिवर्तन से।

राम मंदिर के प्रति कुंठा का अर्थ यह नहीं कि अपनी नफरत की उलटी कहीं भी कर दी जाए। राम मंदिर धर्म आस्था का विषय है। उसे भी हिंदुओं ने लंबे संघर्ष के बाद न्यायालय के जरिए पाया है। इसलिए सैंकड़ों वर्षों पहले जो हिंदुओं के 40 हजार मंदिर पर आक्रमण करके उन्हें मिटा दिया गया, उसका दुख अब भी इनके ‘राम मंदिर’ के दुख से ज्यादा ही है। एक मंदिर की नींव इनसे देखी नहीं जा रही जाहिर है ‘लव जिहाद’ के ख़िलाफ़ कानून कैसे पच पाएगा।

वामपंथी गिरोह का लव जिहाद को भूत बताने का पैटर्न बिलकुल एक साथ सामने आया है। उधर रवीश कुमार के प्राइम टाइम की भाषा सुनाई पड़ी और दूसरी वामपंथियों पोर्टल पे प्रकाशित होते ऐसे लेख पढ़ने को मिले…ऐसा लग रहा है मानो एजेंडा का रिबन काटने से पहले एक मीटिंग में बकायादा ऐसे शब्दों के साथ किसी टीचर ने इन्हें बिंदू समझाए हों और फिर सभी लगे हुए हैं एक ही सवाल करने में।

जैनब सिकंदर को दुख यह है कि हरियाणा और मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार ने भी यूपी की योगी सरकार की तरह लव जिहाद पर कानून बनाने का निर्णय ले लिया है। उनका कहना है कि धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के ये तीन राज्य बड़ी बेशर्मी से धार्मिक कानून बनाने की घोषणा कर रहे हैं। हमारा पूछना है कि धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में निकाह से पहले धर्म परिवर्तन करवाया ही क्यों जा रहा है? पहचान छिपाकर प्रेम का ढोंग हो ही क्यों रहा है?

मेरठ मे 16 सितंबर को कंकरखेड़ा से एक अब्दुल्ला नाम का युवक गिरफ्तार हुआ। उस पर आरोप था कि वह अमन बनकर लड़कियों को फँसाता और फिर उनका अपहरण करके उनके साथ दुष्कर्म करता। उसने हाल में 3 सितंबर को एक युवती का अपहरण किया था। जिसकी बरामदगी 13 दिन बाद हुई। 42 वर्षीय अब्दुल्ला 4 बच्चों का अब्बा था।

बताइए, अब्दुल्ला को क्या जरूरत थी ये सब करने की। ऐसा व्यक्ति मानसिक रूप से पीड़ित बताया जाएगा। इस जैसों के लिए भी सरकार न बनाए कानून तो क्या करे? केरल में यदि पादरी तक लव जिहाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए गृह मंत्रालय को पत्र लिख रहे हैं तो सोचिए ये दक्षिणपंथियों के फितूर की उपज नहीं है। इसे समाज का हर तबका कोढ़ मान रहा है।

जैनब पूछती हैं कि अगर ऐसा ही होना है तो सऊदी अरब में वहाबिया पुलिस आतंक में क्या फर्क है? आप खुद सोचिए पाठक को बरगलाना ऐसी बातों को करना नहीं कहते तो किसे कहते हैं, क्या सरकार किसी प्रकार के कपड़ों को पहनने में प्रतिबंध लगा रही है? किसी को प्रेम विवाह करने से रोक रही है? नहीं, सरकार का कदम सिर्फ कट्टरपंथ के ख़िलाफ है। आपके मौलिक अधिकार छीनने के लिए कोई राज्य सरकार आतुर नहीं है।

धर्म या मजहब के नाम पर कोई फरमान नहीं सुनाया जा रहा बल्कि मजहब के नाम पर हो रहे अपराध से नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास हो रहा है। आपके ऊपर है कि आप इसे कैसे लेंगी। भाजपा और आरएसएस के प्रति नफरत ने आपकी सोच को गर्त में लाकर छोड़ दिया है।

आप इसे फेमिनिस्टों का मुद्दा बनाने के लिए इसे पितृसत्ता से जोड़ रही है और यह हिंदू महिलाओं की समझ पर सवाल उठाकर उसे अस्मिता का सवाल बना रही हैं कि वो खुद का बुरा भला सोचने में अक्षम हैं।

विचार करिए! ब्रेन वॉश शब्द के मायने क्या होते हैं। कुछ दिन कानपुर के गोविंदनगर इलाके में एक आसिफ शाह नाम के युवक ने पहले एक हिंदू युवती को अपने जाल में फँसाया फिर उसका ब्रेनवॉश करके जबरन उसका धर्म परिवर्तन करवाया। बाद में लड़की खराब और मानसिक रूप से अस्थिर हालत में पाई गई। परिजनों की शिकायत पर इस मामले को धारा 366 के तहत दर्ज किया गया है।

कौन लड़की आतंकी बनना चाहती है और यदि किसी लड़के से प्रेम करने के बाद वह आईएसआईएस से जुड़ रही है तो इतने के बाद भी उसमें लड़के की गलती न समझी जाए। हर चीज पर पितृसत्ता का तेल लगाने से आपका एजेंडा तेजी से नहीं फैलेगा।

लड़का कम उम्र का हो तब भी माता-पिता उसका ध्यान उतनी सख्ती से देते हैं जितनी सख्ती से एक लड़की के लिए रोक-टोक करते हैं। हर चीज में पितृसत्ता घुसा देने से इसकी गंभीरता वाकई मरती जा रही हैं। महिलाओं के लिए फेमिनिज्म का मतलब पुरुष विरोधी होना हो गया या अधिकार के नाम पर केवल मनमानियाँ मनवाना।

इसके अलावा ये भी समझने की जरूरत है कि पितृसत्तात्मक समाज के दोषी केवल हिंदू पुरुष नहीं है। इसे परिभाषित करना है तो आप किसी भी धर्म मजहब में इसके अनेको उदाहरण देख सकते हैं लेकिन लव जिहाद की अवधारणा इससे बहुत अलग है। इसलिए इन दोनों को जोड़ना बेवकूफी से ज्यादा कुछ नहीं है।

पिछले दिनों बिहार के बेगूसराय एक हिंदू ब्राह्मण ने अपनी मर्जी ने मुस्लिम युवक आफताब से कोर्ट मैरेज की। लड़की के घर तक ने लड़के को स्वीकार, लेकिन शादी के 16 साल बाद युवक ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया और महिला पर आए दिन हमले करने लगा, उसके परिवार वाले उसे गलत शब्द बोलने लगे।

ये उदाहरण इस बात का सबूत हैं कि बिहार जैसे इलाकों में भी हिंदू धर्म में लड़कियाँ ही नहीं उनके परिवार भी हर धर्म मजहब को लेकर लिबरल हो रहे हैं, लेकिन वहीं दूसरा समुदाय घूम फिराकर पिछड़ी सोच से ऊपर नहीं उठ पा रहा और हास्यास्पद यह है कि जैनब जैसे पढ़े लिखे लोग इसे ‘प्रेम’ का देकर इसपर स्पष्टीकरण दे रहे हैं।

उन मौलवियों की बातें शायद जैनब ने नहीं सुनी जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये कहते हैं कि भारत में हिंदुओं को धर्म परिवर्तन करवाना बेहद आसान काम है या उन बच्चों की वायरल वीडियो सोशल मीडिया पर कभी नहीं देखी कि जो ये बताते हैं कि उन्हें मदरसों में हिंदू लड़कियों के लिए क्या सिखाया जाता है।

जैनब का लेख में कहना है कि साल 2009 में निराधार ही एबीवीपी ने ऐसा झूठ फैलाया कि लव जिहाद के तहत 4000 लड़कियों का धर्मांतरण हुआ लेकिन वह ये नहीं बताती कि इस पर्चे में और क्या लिखा था और इसका संदर्भ क्या था।

उनके लिए यही तर्क का आधार है कि वो कानपुर में जिन लव जिहाद के मामलों जाँच हो रही थी उनमें से आधे ऐसे निकल आए हैं जो रजामंदी से हुए। उनका इससे सरोकार नहीं है पिछले दिनों में मुस्लिम युवकों ने पहले पहचान छिपाकर, फिर धर्म बदलवाकर, बाद में निकाह करके कैसे हिंदू महिलाओं के साथ बर्बरता की या फिर उन्हें मौत के घाट उतारा।