दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के नाम पर मोदी सरकार को बदनाम करने का काम जितनी तेजी से कॉन्ग्रेस कर रही है, उसे देख यही लगता है कि उनके लिए यह आंदोलन अपनी पहचान जिंदा रखने के लिए एक अवसर जैसा है।
आए दिन हर कॉन्ग्रेसी नेता इस प्रदर्शन की बाबत उलटी-सीधी बयानबाजी कर रहे हैं। राहुल गाँधी स्वयं मोदी सरकार को क्रूर बता रहे हैं। हालाँकि इस बीच हैरानी इस बात की है कि आज किसानों की हितैषी बन बैठी कॉन्ग्रेस उस किसानों के नरसंहार, उस मुलताई कांड को भूल गई, जिसे आनी वाली 12 जनवरी को 18 साल पूरे हो जाएँगे।
12 जनवरी 1998 वही दिन है, जिसे याद करके आज भी मध्य प्रदेश की जनता सिहर जाए। इसी दिन राज्य में 24 किसानों को मौत के घाट उतारा गया था। उनकी गलती सिर्फ इतनी थी कि वह गेरुआ रोग के कारण खराब हुई अपनी फसलों की शिकायत लेकर सरकार के पास पहुँचे थे और उनसे समाधान चाहते थे। उनके इस प्रदर्शन का नेतृत्व समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम कर रहे थे।
किसानों की खस्ता हालात देखते हुए उन्होंने ही 25 दिसंबर 1997 को मुलताई में धरना देना शुरू किया था। धीरे-धीरे उनके साथ कई किसान नेता जुड़ते गए। किसान संघर्ष समिति का गठन हुआ और एक माँग पत्र बनाया गया। इन सब कोशिशों का सिर्फ़ यही मकसद था कि किसानों की बात सुन ली जाए और जो उनकी फसलें बर्बाद हुई हैं, उसके बदले सरकार मदद प्रदान करे।
बैठकें हुईं। आपसी बातचीत हुई। किसान नेताओं ने माँग रखी। लेकिन प्रशासन बिलकुल चुप था। देखते ही देखते 9 जनवरी 1998 का दिन आया। सैंकड़ों की तादाद में किसान बैतूल पुलिस ग्राउंड में जुट गए।
किसान चाहते थे कि उन्हें 1 एकड़ के बदले 5000 रुपए हर्जाना दिया जाए। लेकिन प्रशासन प्रस्ताव लेकर आया 1 एकड़ के बदले 400 रुपए देने का। किसानों ने मना कर दिया और अपनी कुछ अतिरिक्त माँगे बताईं, जैसे आधी कीमत पर राशन देना, खाद-बीज-कीटनाशक का कर्ज माफ कर देना आदि।
2 दिन तक प्रशासन अपनी शर्तों पर किसानों को मनाने का प्रयास करता रहा, लेकिन 12 जनवरी को किसानों ने विरोध-प्रदर्शन के तौर पर तहसील पर ताला लगाने का फैसला कर लिया। इस बीच कहते हैं कि कॉन्ग्रेस ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी कि किसानों पर पुलिस के हमले शुरू हो चुके थे। कई जगह आगजनी हुई थी, उनका इल्जाम भी प्रदर्शनकारियों पर मढ़ा गया था। उन्हें पकड़ कर जेल में बंद किया जाने लगा था। उन पर अराजकता फैलाने के इल्जाम लगने लगे थे। जिसे देख समझ कर किसानों में गुस्सा बढ़ता जा रहा था।
12 जनवरी को इसी गुस्से को जाहिर करने के लिए तहसील कार्यालय को घेरा गया और कथित तौर पर पथराव शुरू हुआ। बस, पुलिस जैसे मौके के तलाश में थी। उन्होंने पहले किसानों पर आँसू गैस छोड़े, लाठीचार्ज की और फिर बिना किसी पूर्व चेतावनी के फायरिंग शुरू हो गई।
अपनी खराब फसल के बदले मुआवजा माँगने वाले किसान घायल जमीन पर थे। 17 ने तो मौके पर दम तोड़ दिया था, लेकिन बाद में आँकड़े 24 बताए जाने लगे। धीरे-धीरे पता चला कि इस हमले में 150 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। कुछ बच्चे जो उसी रास्ते से गुजर रहे थे, वह भी पुलिसिया बर्बरता का शिकार हुए।
सबसे हैरानी की बात यह है कि 12 जनवरी 1998 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह थे। वही दिग्विजय सिंह, जो आज ट्विटर पर आए दिन किसानों के नाम पर मोदी सरकार पर निशाना साध रहे हैं। किसानों के हमदर्द बने हैं। यही दिग्विजय, उस दौरान मुलताई कांड के समय चुनाव प्रचार कर रहे थे। मगर, प्रशासन के ख़िलाफ़ इनसे कुछ नहीं कहा जा रहा था।
ध्यान रहे कि इस पूरे संहार से पहले और बाद में दिग्विजय सिंह के हाथ ही मध्य प्रदेश की डोर थी। 1998 में हुई 11वीं विधानसभा चुनाव में वह फिर 1 दिसंबर को 1998 को मुख्यमंत्री चुने गए थे और 7 दिसंबर 2003 तक कार्यभार संभाले रखा था। मगर, प्रशासन के ख़िलाफ़ उनसे कुछ नहीं कहा गया।
बाद में बलराम जाखड़ को कॉन्ग्रेस हाईकमान के बनाए जाँच दल में मुलताई भेजा गया। लौट कर उन्होंने बताया कि गलती प्रशासन की थी। तब जाकर दिग्विजय सरकार ने जिलाधिकारी रजनीश वैश्य और एसपी जीपी सिंह पर एक्शन लिया। कहने को पूरे मामले में प्रशासनिक जाँच के आदेश भी दिए गए लेकिन किसानों की स्थिति दिग्विजय राज में दयनीय बनी रही।
अंत में सारे किए धरे का ठीकरा सपा के सुनीलम पर फोड़ा गया। उन पर बाकायदा केस चले और आरोप मढ़ा गया कि उन्होंने किसानों को उकसाया। साल 2012 में सुनीलम को 7 साल की सजा हुई। जिस पर सुनीलम ने दिग्गी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा:
`दिग्विजय सिंह ने मेरी हत्या के इरादे से ही 12 जनवरी 1998 को गोली चलवाई थी और मेरे खिलाफ 66 मुकदमे दर्ज कराने का मकसद सालों साल अदालत के चक्कर कटवाना तथा सजा दिलवाना ही था। आज मैं कह सकता हूँ कि वे तात्कालिक तौर पर ही सही, अपना षड्यंत्र पूरा करने में सफल हुए हैं।`
मध्य प्रदेश में किसानों की स्थिति आज भी बहुत बेहतर नहीं कही जा सकती लेकिन कॉन्ग्रेस शासन के अंत के बाद 2005 में शिवराज सरकार में वहाँ की स्थिति में सुधार देखने को मिलता है।
बराक ओबामा ने अपनी किताब में राहुल गाँधी को अनगढ़ छात्र बता कर बिलकुल सही विशेषण का प्रयोग किया। वो जनता को इंप्रेस करने के चक्कर में मोदी सरकार पर कीचड़ उछाल रहे हैं, लेकिन उनकी खुद की पार्टी मुलताई में हुए किसानों के संहार की जिम्मेदार मानी जाती है, वह आज तक उस पर बात नहीं करते।
CAG रिपोर्ट्स कहती हैं कि कॉन्ग्रेस सरकार 52000 करोड़ रुपए तक की गड़बड़ी कर चुकी है, जिसे किसानों की कर्जमाफी और उनके कल्याण के लिए सैंक्शन किया गया था। बावजूद इन सभी तथ्यों के कॉन्ग्रेस का कोई नेता इन पर मलाल नहीं खाता और मोदी सरकार से खुल कर शर्म करने को कहता है। कॉन्ग्रेस से यह सवाल तो बनता है कि मोदी सरकार किस बात की शर्म करे कि उनके सामने एक ऐसा विपक्ष है, जिसका मकसद जनसरोकार नहीं राजनीति बचाने के लिए अवसर खोजना है।