राजेश श्रीवास्तव
पिछले करीब एक महीने से चल रहे किसानों के आंदोलन के बीच अब यह तो साफ हो ही गया है कि यह आंदोलन लंबा चलने वाला है क्योंकि दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी ओर से अड़े हैं। अगर किसान पीछे हटने को तैयार नहीं हैं तो सरकार भी पीछे नहीं हट रही है। ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर कौन झुकेगा। कहा जाता है कि सरकार के सौ-सौ हाथ होते हैं इसीलिए सरकार ने किसानों के आंदोलन को झुठलाने और खत्म कराने की तमाम रणनीति पर अमल करना भी शुरू कर दिया है। इसी क्रम में सरकार, खुद प्रधानमंत्री उनके कैबिनेट मंत्री और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने यह प्रचारित करना शुरू कर दिया है कि भाजपा शासन आने के बाद किसानों के जीवन में बदलाव हुआ । उनके जीवन में खुशहाली आयी है। लिहाजा इस बात की चर्चा भी जरूरी हो गयी कि क्या भारत के किसान वास्तव मंे सुखी-समृद्ध हुए हैं या फिर किसान करीब हो गये हैं।
बीते वर्ष 2०16 में प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी बीजेपी ने वादा किया था कि 2०22 तक वो किसानों की आय को दोगुनी कर देंगे। लेकिन क्या इस बात का कोई सबूत है कि गांव में रहने वालों कि ज़िंदगी में सकारात्मक बदलाव आए हैं? विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 4० प्रतिशत से अधिक काम करने वाले लोग खेती से जुड़े हुए हैं। ग्रामीण भारत की घरेलू आय से जुड़े हाल के कोई आंकड़े नहीं है, लेकिन कृषि मजदूरी, जो कि ग्रामीण आय का एक अहम हिस्सा है, उससे जुड़े कुछ आंकड़े मौजूद है। इसके मुताबिक साल 2०14 से 2०19 के बीच विकास की दर धीमी हुई है। भारत में महंगाई दर पिछले कुछ सालों में बढ़ी है, वर्ल्ड बैंक के डेटा के मुताबिक उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति 2०17 में 2.5% से थोड़ी कम थी जो कि बढ़कर 2०19 में लगभग 7.7% हो गई। इसलिए मजदूरी में मिले लाभ का कोई फ़ायदा नहीं हुआ। ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर इकॉनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलेपमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक 2०13 से 2०16 के बीच सही मायने में किसानों की आय केवल 2 प्रतिशत बढ़ी है। इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इनकी आय ग़ैर-किसानी वाले परिवारों का एक तिहाई भर है।
कृषि मामलों के जानकारों की मानें तो किसानों की आय नहीं बढ़ी है, और मुमकिन है कि पहले से ये कम ही हो गई है। अगर हम महंगाई को देखें तो महीने के दो हज़ार रुपये बढ़ जाने से बहुत ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ता। खेती से जुड़े सामानों की बढ़ती कीमतों की ओर भी इशारा करते हैं, और बाज़ार में उत्पादन के घटते बढ़ते दामों को लेकर भी चितित हैं। 2०17 में एक सरकारी कमेटी ने रिपोर्ट दी थी कि 2०15 के मुकाबले 2०22 में आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किसानों को 1०.4 प्रतिशत की दर से बढ़ना होगा। इसके अलावा, ये भी कहा गया था कि सरकार को 6.39 बिलियन रुपये का निवेश खेती के सेक्टर में करना होगा। 2०11-12 में सरकार का कुल निवेश केवल 8.5 प्रतिशत था। 2०13-14 में ये बढ़कर 8.6 प्रतिशत हुआ और इसके बाद इसमें गिरावट दर्ज की गई। 2०15 से ये निवेश 6 से 7 प्रतिशत भर ही रह गया है। वर्ष 2०16 में नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट ने एक सरकारी सर्वे में पाया था कि तीन सालों में किसानों का कर्ज़ करीब दोगुना बढ़ गया था। केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ़ से पिछले कुछ सालों में कोशिश की गई है कि किसानों को सीधे वित्तीय सहायता दी जाए और दूसरे कदम उठाकर भी मदद की जाए, जैसे कि उर्वरक और बीज पर सब्सिडी और कुछ क्रेडिट स्कीम देना आदि ऐसे तमाम उपाय हैं। इसी क्रम में 2०19 में केंद्र सरकार ने ऐलान किया कि पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत कैश ट्रांसफर से मदद ली जाएगी। इस स्कीम के तहत केंद्र सरकार ने ऐलान किया कि किसानों को हर साल 6००० रुपये की मदद की जाएगी। लिहाजा भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों का यह कहना कि किसानों के जीवन में खुशहाली आयी है, यह आज तक मिले आंकड़ों से तो नहीं साबित होता है। हो सकता है कि खुशहाली के डाटा तक अभी हम न पहंुच सके हों लेकिन अगर ऐसा होता तो किसान ठंड में बार्डर पर क्यों जमा होता।