जयन्ती मिश्रा
राष्ट्रपति महात्मा गाँधी की हत्या के नाम पर एक बार फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को बदनाम करने का प्रयास हुआ है। इस बार भी यह कोशिश कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने की है। उन्होंने पूछा है कि अगर गाँधी जी ने हिंदू धर्म को समझा और अपनी पूरी जिंदगी इस धर्म को समझने में लगा दी तो आरएसएस की विचारधारा ने उस हिंदू की छाती पर तीन गोली क्यों मारी?
When Mahatma Gandhi ji understood the Hindu dharma, and spent his entire life understanding the Hindu dharma, then why did the RSS ideology shoot a bullet to his chest?: Shri @RahulGandhi#MahilaCongressFoundationDay pic.twitter.com/8CEL2iXUHE
— Congress (@INCIndia) September 15, 2021
गाँधी की हत्या के पीछे आरएसएस विचारधारा को जिम्मेदार बताते हुए राहुल ने कहा कि वे किसी भी विचारधारा से समझौता करने को तैयार हैं, लेकिन आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी से नहीं।
अब सबसे पहला सवाल तो यही है कि क्या राहुल गाँधी सच बोल रहे हैं? क्या सच में आरएसएस की विचारधारा ने गाँधी को मारा? अगर हाँ! तो बचपन से किताबों में ये क्यों पढ़ाया गया कि गाँधी पर गोली नाथूराम गोडसे ने चलाई थी। वे गोडसे जिसने कोर्ट में स्वीकार किया था कि उसने गाँधी पर गोली भारत के विभाजन से आहत हो कर चलाई न कि आरएसएस कि विचारधारा से प्रेरित होकर।
कोर्ट में गोडसे ने कहा था,
“…जब कॉन्ग्रेस के शीर्ष नेताओं ने गाँधी जी की सहमति से इस देश को काट डाला जिसे हम पूजनीय मानते हैं तो मेरा मस्तिष्क क्रोध से भर गया। मैं साहसपूर्वक कहता हूँ कि गाँधी अपने कर्तव्य में विफल हुए और उन्होंने खुद को पाकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया। मैंने ऐसे व्यक्ति पर गोली चलाई जिसकी नीतियों और कार्यों से करोड़ों हिंदुओं को केवल बर्बादी मिली। ऐसी कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिससे उस अपराधी को सजा मिलती इसलिए मैंने इस घातक रास्ते को अपनाया।”
महात्मा गाँधी का नाम ले लेकर संघ को कोसने वाले राहुल गाँधी शायद नहीं जानते कि आरएसएस की विचारधारा ने गाँधी को नहीं मारा (यह बात साबित हुई थी तभी संघ पर से बैन हटा), लेकिन कॉन्ग्रेसियों ने महात्मा गाँधी के विचारों की पीठ पर तीन खंजर जरूर घोपें हैं। अगर याद नहीं तो एक नजर मार लेते हैं:
गौभक्त गाँधी के आदर्शों पर चलने वाली पार्टी की बीफ पार्टी
महात्मा गाँधी ने कभी कहा था, “मैं ऐसा स्वराज नहीं चाहता जहाँ गायें मारी जाएँ।” लेकिन कॉन्ग्रेस के नेता क्या करते हैं? वह खुलेआम बीफ पार्टी करते हैं। खुशी जाहिर करना हो तो बीफ पार्टी होती है। विरोध करना हो तो बीफ पार्टी होती है। सबसे दिलचस्प बात ये है कि ये सब उसी केरल में होता है जिसके एक क्षेत्र वायनाड का प्रतिनिधित्व राहुल गाँधी स्वयं करते हैं।
बहुत पहले की बात न भी करें तो पिछले साल ही केरल के कोझीकोड में कॉन्ग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने एक पुलिस स्टेशन के सामने खुलेआम बीफ पार्टी का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में बीफ खाया भी जा रहा था और खिलाया भी जा रहा था। क्या कॉन्ग्रेस पार्टी ये बात नहीं जानती कि हिंदुओं के लिए गौ पूजनीय है या उन्हें ये नहीं पता कि गाँधी के विचार गायों को लेकर क्या थे।
Another Video from Kerala :
Sidhikh Panthavoor,Secretary, Youth Congress Distribiting Cow meat after Killing Gau Mata pic.twitter.com/stIi3CJ625— Tajinder Pal Singh Bagga (@TajinderBagga) May 29, 2017
जिस कॉन्ग्रेस को भंग करना चाहते थे गाँधी वही कॉन्ग्रेस उनके नाम पर कर रही राजनीति
इसी तरह महात्मा गाँधी के नाम पर उछलने वाली कॉन्ग्रेस वो पार्टी है, जिसे महात्मा गाँधी भंग करना चाहते थे और इसका जिक्र हमें ‘द कलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ महात्मा गाँधी’ में भी पढ़ने को मिलता है। दरअसल, कॉन्ग्रेस का गठन देश की आजादी के लिहाज से किया गया था। गाँधी चाहते थे कि पार्टी स्वतंत्रता के बाद भंग हो, क्योंकि उन्हें एहसास था कि इसके नाम का इस्तेमाल नेता अपनी निजी हितों की पूर्ति के लिए करेंगे। बाद में यही हुआ भी।
कॉन्ग्रेस को खड़ा करने में सरदार भाई वल्लभ पटेल, बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय जैसे हिंदुत्वादी नेताओं की बड़ी भूमिका थी। मगर, गाँधी की हत्या के बाद कॉन्ग्रेस ने सबसे पहला काम इस विचार को मलिन करने का किया और राष्ट्रपिता की हत्या को अवसर की तरह इस्तेमाल किया। इसके अलावा पार्टी को भंग नहीं होने दिया गया और आज तक महात्मा गाँधी के नाम का इस्तेमाल अपनी विश्वसनीयता साबित करने के लिए कॉन्ग्रेसियों द्वारा किया जाता है।
दलितों को हिंदू मानते थे गाँधी, लेकिन कॉन्ग्रेस क्या करती है?
ऐसे ही बात जब भी जाति-पाति या दलितों की होती है तो महात्मा गाँधी और आंबेडकर के बीच का एक वाकया जरूर उठता है। ये वो वाकया है जब गाँधी ने आंबेडकर के उन प्रयासों का विरोध किया था जब वह दलितों को गैर हिंदू साबित करने का प्रयास कर रहे थे। गाँधी के इसी रवैये के कारण आंबेडकर ने उन्हें दोहरे व्यवहार वाला कहा था। साथ ही उन पर लोगों को धोखा देने का आरोप भी लगाया था।
आंबेडकर ने कहा था, “अंग्रेजी अखबार में उन्होंने खुद को जाति व्यवस्था और छुआछूत के विरोधी के रूप में पेश किया। लेकिन अगर आप उनकी गुजराती पत्रिका को पढ़ेंगे, तो आप उन्हें सबसे रूढ़िवादी व्यक्ति के रूप में देखेंगे। वह जाति व्यवस्था, वर्णाश्रम धर्म और सभी रूढ़िवादी हठधर्मियों का समर्थन करते रहे हैं।”
आंबेडकर के ये शब्द गाँधी के लिए इसलिए थे क्योंकि उनको लगता था गाँधी पारंपरिक जाति व्यवस्था का समर्थन करते हैं। लेकिन दूसरी ओर राहुल गाँधी और उनकी पार्टी हैं जो आए दिन ऐसे लोगों से हाथ मिलाती है जिनका मकसद ही दलितों को यह महसूस कराना है कि वो हिंदुओं से अलग हैं और उनके असली सहयोगी ‘भीम-मीम’ का सच है।
राहुल गाँधी को ऐसे बयान के लिए लगी थी फटकार
गौरतलब है कि आज महात्मा गाँधी की हत्या के पीछे आरएसएस को जिम्मेदार बताने वाले राहुल गाँधी भूल गए हैं कि उन्हें अपनी ऐसी बयानबाजी के कारण कई बार शर्मिंदा होना पड़ा है। साल 2014 में ठाणे जिले के सोनाले में आयोजित चुनावी सभा में आरएसएस को गाँधी का हत्यारा बताने पर राहुल गाँधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला हुआ था। हाईकोर्ट ने चेतावनी भी दी थी कि राहुल गाँधी इस मामले में माफी माँगें या फिर मुकदमे का सामना करें। कोर्ट ने राहुल गाँधी के भाषण पर सवाल उठाए थे और आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा था कि आखिर उन्होंने गलत ऐतिहासिक तथ्य का उद्धरण लेकर भाषण क्यों दिया?
2/n @digvijaya_28 ji, RN Banerjee who was Home Secretary when Gandhi was assassinated.
In his opinion those who conspired to murder Gandhi didn’t do so as member of RSS.
Ref: JL Kapur Commission Report,Vol 1.0, Pg 21 pic.twitter.com/Vib39Fe2IB
— Aabhas Maldahiyar 🇮🇳 (@Aabhas24) August 21, 2019
3/n Mr R N Banerjee was again called on April 26,1968 & he stood to his earlier assertion that conspirators of Gandhi’s Assassination were not acting as RSS affiliate.
Ref: JL Kapur Commission Report,Vol 1.0, Pg 176 pic.twitter.com/MhyXs2PGax
— Aabhas Maldahiyar 🇮🇳 (@Aabhas24) August 21, 2019
इसी तरह अपने ऐसे दावों के कारण एजी नूरानी जैसे स्तंभकारों को अपने लेख के लिए माफी माँगनी पड़ी थी। इसके अलावा कॉन्ग्रेस अध्यक्ष रह चुके सीताराम केसरी को भी संघ पर गाँधी की हत्या का आरोप लगाने के लिए माफी माँगनी पड़ी थी।
अंत में फिर, रही बात गोडसे के संघ से जुड़े होने की तो कपूर आयोग की रिपोर्ट में आरएन बनर्जी की गवाही है जो हत्या के समय केंद्रीय गृह सचिव थे। उन्होंने खुद कहा था कि अपराधी संघ का सदस्य था। लेकिन वह संघ की गतिविधियों से असंतुष्ट था। गोडसे खेलकूद, शारीरिक व्यायाम आदि को बेकार मानता था। और इसी असंतुष्टि के कारण उसने आरएसएस को बाद में छोड़ भी दिया था। अर्थात, यह स्पष्ट है कि गाँधी हत्या में आरएसएस का नाम बार-बार लेना लंबे समय से चली आ रही साजिश और षड्यंत्र का परिणाम है।
सभार…………………………….