भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज से पहले अभ्यास मैच में अपनी तैयारियों को परख रही है. प्रशंसकों से लेकर कई पूर्व क्रिकेटरों को लगता है कि भारत के पास इस बार ऑस्ट्रेलिया में जीतने का सबसे अच्छा मौका है. कोच रवि शास्त्री भी दावा कर चुके हैं कि ‘विराट कोहली ब्रिगेड’, विदेश में दौरा करने वाली भारत की अब तक की सबसे मजबूत टीम है. वे ऐसा ही दावा इंग्लैंड दौरे पर कर चुके हैं. हालांकि, तब नतीजों ने शास्त्री के दावों का साथ नहीं दिया था. अब देखना है कि ऑस्ट्रेलिया में ऊंट किस करवट बैठता है.
‘जी डिजिटल’ ने भारत-इंग्लैंड के 71 साल के क्रिकेट सफर का फैक्ट चेक किया तो कई दिलचस्प आंकड़े सामने आए. हम आमतौर पर विदेश में बेहतर प्रदर्शन के लिए सौरव गांगुली और महेंद्र सिंह धोनी को याद करते हैं. लेकिन सच्चाई यह है कि ऑस्ट्रेलिया में हमने अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन तब किया था, जब धोनी पैदा भी नहीं हुए थे या गांगुली ने स्कूल जाना शुरू ही किया था. हम ऐसा धोनी या गांगुली को कमतर आंकने के लिए नहीं कह रहे हैं. हमारा इरादा तो युवा भारतीय क्रिकेटप्रेमियों को इतिहास के पन्नों की ओर ले जाना भर है. भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच पहला टेस्ट मैच 1947 में खेला गया. तब से अब तक दोनों टीमें 25 टेस्ट सीरीज में 128 मैच खेल चुकी हैं.
1947 में खेली गई पहली टेस्ट सीरीज
भारत और ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट रिश्तों की शुरुआत 1947 में ही हुई थी. दोनों देशों के बीच 28 नवंबर से 2 दिसंबर तक ब्रिस्बेन में पहला मैच खेला गया. भारतीय टीम की कमान लाला अमरनाथ और ऑस्ट्रेलिया की कमान डॉन ब्रैडमैन ने संभाली. ब्रैडमैन ने ख्याति के अनुरूप बल्लेबाजी की और 185 रन बनाए. ऑस्ट्रेलिया ने यह मैच पारी के अंतर से जीता. भारतीय टीम इस सीरीज में पांच में से चार टेस्ट मैच हार गई. इसके बाद 1967-68 में ऑस्ट्रेलिया गई टीम को सभी चारों टेस्ट में हार का सामना करना पड़ा. यानी, भारत ऑस्ट्रेलिया में पहले नौ में से आठ टेस्ट मैच हार गया.
पेस अटैक नहीं, स्पिनरों ने दिलाई पहली जीत
ऑस्ट्रेलिया में भारत के अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाने की मुख्य वजह टीम में अच्छे तेज गेंदबाजों की कमी को माना गया. मजेदार बात यह है कि भारत की जिस टीम ने ऑस्ट्रेलिया में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया, उसकी ताकत पेस अटैक नहीं, स्पिन गेंदबाजी थी. 1977-78 में ऑस्ट्रेलिया गई इस टीम के कप्तान भी बाएं हाथ के स्पिनर बिशन सिंह बेदी ही थे. टीम में बेदी, भगवत चंद्रशेखर, इरापल्ली प्रसन्ना और श्रीनिवासन वेंकटराघवन के रूप में मजबूत स्पिन चौकड़ी थी. ऑस्ट्रेलिया में भारत की पहली जीत के हीरो भी चंद्रशेखर और बेदी ही थे.
बेदी की टीम ने सीरीज में 2 टेस्ट जीते
बिशन सिंह बेदी की अगुवाई वाली भारतीय टीम 1977-78 में पहले दो टेस्ट हार गई. कप्तान बेदी ने पहले दो टेस्ट हारने के बाद रणनीति और प्लेइंग XI बदला और नतीजा ऐतिहासिक रहा. भारत ने तीसरा टेस्ट मैच 222 रन से जीता. यह ऑस्ट्रेलिया में भारत की पहली जीत थी. जीत के हीरो लेग स्पिनर चंद्रा रहे. उन्होंने 12 विकेट लिए. बेदी ने भी छह विकेट झटके. सुनील गावस्कर ने शतक बनाया. मोहिंदर अमरनाथ (72, 41) गुंडप्पा विश्वनाथ (59, 54) और अशोक मांकड़ (44, 38) ने भी बेहतरीन पारियां खेलीं. भारत ने इसके बाद चौथा टेस्ट पारी और दो रन से जीता. हालांकि, पांचवां टेस्ट हारने के कारण भारत यह सीरीज नहीं जीत सका. इस सीरीज में चंद्रा ने 31 और बेदी ने 28 विकेट झटके. ये दोनों सीरीज के टॉप-2 गेंदबाज रहे. बेदी की अगुवाई वाली इस टीम का प्रदर्शन 40 साल बाद भी भारतीय रिकॉर्ड है. इसके बाद से आज तक कोई भी भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया में एक सीरीज में दो टेस्ट नहीं जीत सकी है.
सुनील गावस्कर की टीम ने खेला ड्रॉ
बिशन सिंह बेदी की टीम के तीन साल बाद 1981 में सुनील गावस्कर की कप्तानी वाली टीम ने ऑस्ट्रेलिया में सीरीज ड्रॉ कराई. इस सीरीज का पहला मैच ऑस्ट्रेलिया ने जीता. दूसरा मैच ड्रॉ रहा. इसके बाद भारत ने तीसरा टेस्ट जीतकर सीरीज बराबर कर ली. गावस्कर की टीम ऑस्ट्रेलिया में सीरीज ड्रॉ कराने वाली पहली टीम थी. इसके बाद 1985-86 में कपिल देव की टीम ने भी ऑस्ट्रेलिया में तीन मैचों की सीरीज 0-0 से ड्रॉ खेली. 1991-92 में मोहम्मद अजहरुद्दीन की टीम 5 में से 4 मैच हारकर स्वदेश लौटी. एक मैच ड्रॉ रहा. इसके करीब आठ साल बाद सचिन तेंदुलकर की टीम भी ऑस्ट्रेलिया में 3 मैचों की सीरीज 0-3 से हार गई.
गांगुली ने भी ड्रॉ कराई सीरीज
सौरव गांगुली तीसरे भारतीय कप्तान थे, जिनकी टीम ने ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज ड्रॉ खेला. 2001 में खेली गई इस सीरीज में भारत दो मैचों के बाद 1-0 से आगे था. सीरीज अंतत: 1-1 से बराबरी पर खत्म हुई. इसके बाद 2007-08 में अनिल कुंबले की कप्तानी वाली टीम ने ऑस्ट्रेलिया में एक टेस्ट मैच जीता. यह सीरीज 2-1 से ऑस्ट्रेलिया के नाम रही. भारत ने 21वीं शताब्दी में ऑस्ट्रेलिया में चार अलग-अलग कप्तानों की अगुवाई में 16 टेस्ट मैच खेले हैं. इनमें से गांगुली और कुंबले की अगुवाई में ही हमें जीत (एक-एक मैच) मिली है.
धोनी की टीम का हुआ व्हाइटवॉश
2011 में वनडे वर्ल्ड कप जीतने के बाद महेंद्र सिंह धोनी की भारतीय टीम का रुतबा पूरी दुनिया में बढ़ गया. हालांकि, यह टीम विदेश में खेले गए टेस्ट मैचों में उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी. सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, वीरेंद्र सहवाग की मौजूदगी के बावजूद यह टीम सीरीज के चारों मैच हार गई. इसके बाद भारतीय टीम 2015-16 में ऑस्ट्रेलिया गई. इस बार भारत को चार में से दो मैचों में हार का सामना करना पड़ा. इस सीरीज का यादगार पहलू यह भी है कि कप्तान धोनी ने तीसरे टेस्ट के बाद अचानक संन्यास की घोषणा कर दी. इस तरह चौथे टेस्ट में विराट कोहली के रूप में भारत को नया टेस्ट कप्तान मिला. कोहली ने अपनी कप्तानी में पहला टेस्ट मैच ड्रॉ कराया. अब वे ऑस्ट्रेलिया में अपने इस प्रदर्शन को बेहतर करने के लिए उतरेंगे.