नई दिल्ली। यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू करने की भारत सरकार की कोशिशों के बीच सऊदी अरब के पूर्व न्याय मंत्री और मक्का स्थित मुसलमानों के प्रभावशाली संगठन मुस्लिम वर्ल्ड लीग (MWL) के महासचिव मोहम्मद बिन अब्दुलकरीम अल-ईसा अगले हफ्ते भारत आ रहे हैं. मुस्लिम वर्ल्ड लीग का दुनियाभर के मुसलमानों पर गहरा प्रभाव है और यूसीसी को लागू करने के लिए भारत सरकार को मुस्लिम समुदाय की व्यापक सहमति जरूरी है, ऐसे में ईसा का भारत दौरा बेहद अहम माना जा रहा है.
ईसा 10 जुलाई को अपने पांच दिवसीय दौरे पर भारत आ रहे हैं. अपनी इस यात्रा के दौरान वो विदेश मंत्री एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी से मिलेंगे. ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि वो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी मिल सकते हैं.
ईसा उदार इस्लाम के समर्थक माने जाते हैं. सऊदी अरब का न्याय मंत्री रहते हुए उन्होंने महिला अधिकारों के लिए कई काम किए. उन्होंने पारिवारिक मामलों, मानवीय मामलों पर भी काम किया. पद पर रहते हुए उन्होंने विभिन्न समुदायों, धर्मों और देशों के बीच के संबंधों को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए.
10 जुलाई को एनएसए अजीत डोभाल से मुलाकात के एक दिन बाद, ईसा दिल्ली स्थित खुसरो फाउंडेशन के निमंत्रण पर दिल्ली में प्रमुख धार्मिक और सामुदायिक नेताओं और शिक्षाविदों की एक सभा को संबोधित करने वाले हैं, जिसमें डोभाल भी मौजूद रहेंगे.
उम्मीद है कि ईसा अपने संबोधन के दौरान उदारवादी इस्लाम, विभिन्न सभ्यताओं के बीच जुड़ाव, धार्मिक सहिष्णुता, अहिंसा और और सभी धर्मों के एक साथ मिलकर रहने के मुद्दे पर अपनी बात रखेंगे.
फाउंडेशन के चेयरमैन सिराजुद्दी कुरैशी ने कहा कि सभा में विभिन्न अरब देशों के राजनयिक, धार्मिक नेता, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिलिया इस्लामिया के शिक्षाविद शामिल होंगे. इंडियन एक्सप्रेस को सूत्रों ने बताया कि ईसा शुक्रवार की नमाज के लिए जामा मस्जिद भी जाएंगे. वो अक्षरधाम मंदिर भी जाएंगे और उनके प्लान में आगरा जाना भी शामिल है.
मुस्लिम वर्ल्ड लीग दावा करता है कि संगठन इस्लाम के सच्चे रूप और उसके सहिष्णु मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है. पिछले साल जब प्रसिद्ध लेखक सलमान रुश्दी पर हमला हुआ था तब ईसा ने कहा था कि ‘रुश्दी पर हमला एक अपराध था जिसे इस्लाम स्वीकार नहीं करता.’
UCC को लागू करने की कोशिशें और ईसा का भारत आना
एक समान नागरिक संहिता (UCC) के तहत नरेंद्र मोदी सरकार पूरे देश के लिए एक कानून लाना चाहती हैं जो सभी धार्मिक और आदिवासी समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे संपत्ति, विवाह, विरासत, गोद लेने आदि पर लागू होगी.
इसके आलोचकों का कहना है कि यूसीसी भारत जैसे विविधतापूर्ण देश की विविधता के लिए एक चुनौती है क्योंकि यह सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून की बात करता है. उनका कहना है कि सरकार इसके जरिए व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों को बदलना चाहती है. आलोचकों का तर्क है कि इस तरह का कदम देश के सांस्कृतिक ताने-बाने को कमजोर कर सकता है और नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर चोट पहुंचा सकता है.
कई मुस्लिम विद्वानों ने इसका विरोध किया है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि देश के मुसलमान अपनी पहचान खोना नहीं चाहते हैं. किसी भी देश की राष्ट्रीय अखंडता, सुरक्षा और सद्भाव तभी बरकरार रहता है जब हम उस देश के अल्पसंख्यकों और आदिवासी समुदायों को उनके पर्सनल लॉ को मानने की अनुमति दें.
कट्टर इस्लाम के कटु आलोचक रहे हैं ईसा
अब्दुलकरीम अल-ईसा कट्टर इस्लाम के कटु आलोचक रहे हैं. तुर्की सहित कई मुस्लिम देश आरोप लगाते हैं कि पश्चिमी देश मुसलमानों के साथ भेदभाव करते हैं और यहां इस्लामोफोबिया काफी बढ़ रहा है. लेकिन ईसा इससे बिल्कुल उलट राय रखते हैं. उनका कहना है कि जो लोग ऐसा मानते हैं कि पश्चिमी देश इस्लाम के विरुद्ध षडयंत्र कर रहे हैं, वो कॉन्सपिरेसी थ्योरी के शिकार हैं.
उन्होंने साल 2018 में कहा था, ‘बहुत से मुसलमानों के बीच एक गलत धारणा है कि मुस्लिमों और इस्लाम के खिलाफ षडयंत्र किया जा रहा है. लेकिन मेरे भाइयों, पश्चिमी देश धार्मिक देश नहीं हैं. उन्होंने अपने धर्म को छोड़कर धर्मनिरपेक्षता को चुना है. तो आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि वो आपको निशाना बना रहे हैं?’
उन्होंने कहा था, ‘कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें गलती से मुस्लिम मान लिया जाता है. उन्होंने अपने अतिवाद और कट्टरता से और कभी-कभी हिंसा और आतंकवाद से इस्लाम की छवि को नुकसान पहुंचाया है. यह सब इस्लाम का प्रतिनिधित्व नहीं करते और अगर हम प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर इनका बचाव करते हैं तो हम भी उनके जैसे ही माने जाएंगे.’
उन्होंने कहा था कि 2019 के मक्का घोषणापत्र, जिस पर हजारों इस्लामिक विद्वानों ने हस्ताक्षर किया था, उसमें इस बात पर जोर दिया गया था कि सभी देशों के संविधान, कानूनों और संस्कृतियों का सम्मान करने की जरूरत है. ईसा कहते रहे हैं कि कट्टर विचारधारा और अतिवाद को खत्म करना उनका मिशन है.
हिजाब को लेकर ईसा की राय
ईसा उन लोगों के कट्टर आलोचक रहे हैं जो बिना किसी वैज्ञानिक आधार और कुतर्क के जरिए धर्म के नाम पर उपदेश देते हैं. महिलाओं के हिजाब पहनने पर दुनियाभर में चल रहे विवाद पर उन्होंने कहा था कि हिजाब न पहनने से कोई महिला काफिर नहीं हो जाती.