बहुविवाह को प्रतिबंधित करेगी असम सरकार, विशेषज्ञ समिति ने सौंपी रिपोर्ट: अब 4 बीवियाँ नहीं रख पाएँगे मुस्लिम मर्द, CM सरमा की दो टूक – महिला उत्थान के लिए ये ज़रूरी

असम में इस्लामी प्रथा का हवाला देकर बहुविवाह को अंजाम देने वाले मुस्लिम मर्दों पर नकेल कसने की तैयारी यहाँ की सरकार ने कर ली है। बहुविवाह को लेकर अध्ययन करने के लिए बनी सरकार की गठित विशेषज्ञ समिति की रविवार (6 अगस्त, 2023) को सौंपी गई रिपोर्ट से इसका रास्ता साफ हो गया है।

इस रिपोर्ट में निष्कर्ष निकला है कि इस्लाम में मुस्लिम पुरुषों के चार महिलाओं से शादी करने की मजहबी प्रथा अनिवार्य प्रथा नहीं है। हाईकोर्ट की रिटायर्ड जज रूमी कुमारी फुकन की अध्यक्षता में चार सदस्यों की समिति की इस रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि राज्य बहुविवाह को खत्म करने के लिए अपना कानून बना सकता है। अब सवाल ये उठता है कि देश के इस उत्तर पूर्वी राज्य में बहुविवाह प्रथा यानी पॉलीगेमी पर कानून बनाने की जरूरत क्यों आन पड़ी है?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के बीते महीने जुलाई में दिए इस बयान पर गौर करिए जिसमें उन्होंने कहा, “समान नागरिक संहिता या यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड (UCC) का फैसला लंबित होने तक, हम पूरे यूसीसी के एक हिस्से को अपनाना चाहते हैं और वह है बहुविवाह। हम असम में बहुविवाह पर तुरंत प्रतिबंध लगाना चाहते हैं, यूसीसी संसद का तय किया जाने वाला मामला है, लेकिन राज्य भी राष्ट्रपति की सहमति से इस पर फैसला ले सकता है।”

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने 11 जुलाई, 2023 को कहा कि यूसीसी मुस्लिम महिलाओं का उत्थान करेगी और उन्हें पुरुषों के बराबर ला खड़ा करेगी। सरमा ने ये भी कहा था कि यूसीसी को केंद्र सरकार लागू करेगी और इसकी मदद से वो बहुविवाह पर रोक लगाने की भी कोशिश में है। उन्होंने कहा था, “यूसीसी का मतलब है कि बहुविवाह बंद हो और महिलाओं को संपत्ति में बराबर का अधिकार मिले। मुस्लिम महिलाओं के उत्थान के लिए बहुविवाह प्रथा को खत्म करना जरूरी है। इसके अलावा यूसीसी इन महिलाओं को पुरुषों के बराबर रखेगी।”

अब बात आती है कि यूसीसी से ऐसा क्या होगा जो मुस्लिमों महिलाओं के लिए फायदे का सौदा साबित होगा। दरअसल, हमारे देश में शादी, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने के मामलों में विभिन्न समुदायों में उनके धर्म, आस्था और विश्वास के आधार पर अलग-अलग क़ानून हैं।

हालाँकि, देश की आजादी के बाद से ही यूसीसी की माँग उठती रही है। इसके तहत पूरे देश में एक कानून लागू होगा। यूसीसी लागू होने से किसी धर्म, लिंग और लैंगिक झुकाव को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया जाएगा। भारत का संविधान भी यही कहता है कि राष्ट्र को अपने नागरिकों को ऐसे क़ानून देने की ‘कोशिश’ करनी चाहिए।

मसला ये है कि एक समान कानून की आलोचना देश की आलोचना में मुस्लिम समाज खासा मुखर रहा है और इसे लेकर कई विवादित बयान भी दिए जाते रहें हैं। पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार संविधान में यूसीसी को लागू करने के विचार को फिर से जीवंत कर रही है। यही वजह है कि बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश, असम जैसे राज्य इसे लेकर सकारात्मक रुख अपनाए हुए हैं।

यूसीसी की माँग मुस्लिम पर्सनल लॉ के कथित ‘पिछड़े’ क़ानूनों का हवाला देकर उठती रही है। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तीन तलाक़ वैध था। इसके तहत मुस्लिम पुरुषों को तुरंत तलाक देने का हक था। देश में 2019 में सरकार ने इसे गैर-कानूनी घोषित कर दिया। इस फैसला का मुस्लिम महिलाओं ने दिल खोल के स्वागत किया था। यूसीसी को लेकर सरकार कहती है कि जब तक भारत में ये लागू नहीं हो जाता तब-तक देश में लैंगिक समानता की बात करना बेमानी है।

बात जब लैंगिक समानता पर आती है तो मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड इसके आड़े आता है। इसमें कई इसे लॉ हैं जो मुस्लिम औरतों को पुरुषों के दर्जे तक आने की राह में बाधा बनते हैं। इसमें से संपत्ति के अधिकार की ही बात करे तो मुस्लिम लॉ के मुताबिक, मुस्लिम परिवार में जन्‍मी बेटी को पिता की संपत्ति में अपने भाई के मुकाबले आधा हिस्सा ही मिलता है।

शरीयत कानून के तहत पारिवारिक संपत्ति के बँटवारे में मुस्लिम महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले आधा हिस्सा देने के प्रावधान को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में बुशरा अली नामक महिला ने अर्जी दाखिल की है। इस पर अभी सुनवाई चल रही है। बुशरा कहना था कि संपत्ति के बँटवारे में उन्हें पुरुषों के मुकाबले आधी हिस्सेदारी मिली है और यह भेदभाव है।

इसी तरह मुस्लिम पर्सनल लॉ में शादी के लिए कोई न्यूनतम उम्र निर्धारित नहीं है। इस वजह से ये लॉ अक्सर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के प्रावधानों के भी आड़े आता है।

बहुविवाह प्रथा कानून को लेकर क्या बोले असम के सीएम?

बहुविवाह पर रोक के कानून को लेकर सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने मीडिया से रविवार 7 अगस्त को कहा, “समिति सर्वसम्मत है कि राज्य बहुविवाह को खत्म करने के लिए अपने खुद के कानून बना सकता है।”

रविवार को गुवाहाटी में एक संवाददाता सम्मेलन में सीएम ने कहा था, “उन्होंने (समिति) जो एकमात्र बिंदु कहा वह यह है कि विधेयक पर अंतिम सहमति राज्यपाल के बजाय राष्ट्रपति को देनी होगी, जो अन्य राज्य कानूनों पर आखिरी हस्ताक्षर करते हैं। ”

मुख्यमंत्री ने ये भी कहा कि राज्य मंत्रिमंडल यह तय करेगा कि सितंबर सत्र के दौरान या जनवरी में विधानसभा में विधेयक पेश किया जाए या नहीं। उन्होंने कहा, “हम विधायकों को बिल पेश करने से पहले कुछ समय देना चाहते हैं ताकि वे इस पर बहस कर सकें। कानून निश्चित रूप से इस वित्तीय वर्ष के भीतर आएगा।”

हालाँकि, सरमा ने कहा कि यह अलग बात होगी अगर प्रस्तावित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को राज्य के कानून से पहले देश में लागू किया जाए। उन्होंने ये भी कहा, “चूँकि मुस्लिम पर्सनल लॉ में शादी के लिए कोई न्यूनतम आयु परिभाषित नहीं है, इसलिए यह अक्सर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के प्रावधानों का खंडन करता है।”

सीएम ने बताया कि समिति ने राज्य सरकार को सुझाव दिया है कि पोक्सो एक्ट और मुस्लिम कानून के बीच विरोधाभास को रोकने के लिए पोक्सो एक्ट के तरह ही राज्य अधिनियम में कुछ प्रावधान किए जाएँ ताकि कई बहसों को खत्म किया जा सके।”

बीते महीने ही सीएम सरमा ने दावा किया था, कि पैगम्बर भी बहुविवाह का समर्थन नहीं करते थे, क्योंकि उनका मानना था कि मुस्लिम पुरुष की एक ही बीवी होनी चाहिए। उन्होंने ये भी कहा था कि बहुविवाह प्रथा पर प्रतिबंध किसी समुदाय के लिए नहीं होगा, बल्कि ये पूरी तरह से इस प्रथा पर प्रतिबंध होगा।

असम में बहुविवाह को लेकर क्यों है कानून की जरूरत ?

असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा के मुताबिक, बराक घाटी के तीन जिलों में बहुविवाह बहुप्रचलित है। हालाँकि पढ़े-लिखे तबके के बीच इसकी दर कम हैं, भले ही वो मुस्लिमों की स्थानीय आबादी ही क्यों न हो। उनका कहना था कि राज्य में बाल विवाह के खिलाफ चलाए गए अभियान में सामने आया कि बड़ी संख्या में बुजुर्गों ने बहुविवाह किया था और अधिकतर उनकी बीवियाँ छोटी उम्र की थीं और वो गरीब तबके से थीं।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आँकड़ों के आधार पर मुंबई स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेस की अप्रैल में एक रिपोर्ट जारी की गई थी। इसमें बताया गया था कि रोक के बाद भी भारत में बहुविवाह की प्रथा प्रचलन में है। इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया था कि भारत में देश के अन्य राज्यों की तुलना में पूर्वोत्तर भारत में ये प्रथा आम है। अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा में बहुविवाह सबसे ज्यादा होते हैं।

‘मुझे यहाँ से हटा दो या बाल विवाह बंद करो’

इस साल 15 मार्च को विधानसभा के बजट सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान सीएम हिंमत बिस्वा सरमा ने बाल विवाह पर अपना रुख साफ करते हुए कहा था कि असम में बाल विवाह के खिलाफ सरकार के एक्शन प्लान में हर 6 महीने में अपराधियों को गिरफ्तार किया जाएगा।

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, सीएम सरमा ने कहा था कि असम में बाल विवाह को रोकना होगा। तब उन्होंने ये तक कह डाला था, “दो विकल्प हैं- या तो मुझे यहाँ से हटा दो या बाल विवाह बंद करो, तीसरा कोई विकल्प नहीं है।”

गौरतलब है कि बाल विवाह पर रोक लगाने के लिए इस साल की शुरुआत में असम सरकार ने एक अभियान चलाया था। तब सीएम ने कहा था, “असम में 2026 तक बाल विवाह के खिलाफ हम नया कानून लाने के बारे में विचार कर रहे हैं। इसमें जेल जाने का वक्त दो साल से बढ़ाकर 10 साल करने को लेकर हम चर्चा कर रहे हैं। हम अपराधियों के लिए रो रहे हैं लेकिन पीड़ित नाबालिग बच्चियों के लिए नहीं। राज्य में एक 11 वर्ष की नाबालिग बच्ची माँ बन गई है, यह स्वीकार्य नहीं है।”

फरवरी 2023 में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा राज्य में बाल विवाह के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का एलान सुर्खियों में रहा था। तब बाल विवाह रोकथाम अधिनियम (पीसीएमए, 2006) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO, 2012) के तहत 2400 से अधिक गिरफ्तारियाँ की गई थीं।

हाल के वर्षों में कथित तौर पर 18 साल से कम उम्र में शादी करने वाली दुल्हनों के पति और पिता मुल्ला, काजी और पुजारी के साथ गिरफ्तार किए गए थे।

इसे लेकर मुस्लिमों ने खासा विरोध दर्ज किया था। असम सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध करने वालों में AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी भी शामिल थे। उनका कहना था कि बीजेपी की सरकार मुस्लिमों के खिलाफ है। ओवैसी ने गिरफ्तारियों पर सवाल उठाते हुए पूछा कि आप लड़कों को जेल भेज देंगे तो लड़कियों का क्या होगा? उन्होंने सीएम सरमा से पूछा कि आपने असम में अब तक कितने स्कूल खोले हैं।

असम सरकार ने क्यों बनाई बहुविवाह पर स्टडी के लिए समिति?

असम सरकार ने 12 मई को न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रूमी कुमारी फुकन की अध्यक्षता में चार सदस्यीय विशेषज्ञ समिति के गठन का एलान किया था। समिति के तीन अन्य सदस्यों में राज्य के महाधिवक्ता देवजीत सैकिया, वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता नलिन कोहली और वरिष्ठ अधिवक्ता नकीब-उर-जमां शामिल थे।

इस समिति को समान नागरिक संहिता के लिए राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 25 और मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम,1937 के प्रावधानों की जांच- पड़ताल का काम सौंपा गया था। शुरू में समिति को रिपोर्ट सौपने के लिए 60 दिनों का वक्त दिया गया था। बाद में इसका कार्यकाल 13 जुलाई से एक महीने बढ़ाकर 12 अगस्त कर दिया गया था।

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा ने ट्वीट किया, “आज, असम में बहुविवाह को समाप्त करने के लिए कानून बनाने के लिए राज्य विधानमंडल की विधायी क्षमता की जाँच करने के लिए गठित विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी। असम अब जाति, पंथ या धर्म से परे महिला सशक्तिकरण के लिए एक सकारात्मक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के करीब है।”

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