नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने सज्जन कुमार को सिख विरोधी दंगों में दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सज़ा सुनाई. आश्चर्य इस बात का है कि किस तरह से तीन दशकों से ज्यादा समय तक सज्जन कुमार को सज़ा नहीं मिली. दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को देखकर पता चलता है कि किस तरह से दिल्ली पुलिस ने मामले को ढकने की कोशिश की. हाईकोर्ट का फैसला यह भी दिखाता है कि राजनीतिक रूप से सशक्त लोग कानून के पंजे से कैसे बच निकलते हैं. पूरे फैसले में कोर्ट ने कहा कि दंगे की साज़िश पहले से ही रच ली गई थी और पुलिस की मिलीभगत से इसको अंजाम दिया गया. कोर्ट ने उन परिस्थितियों का भी ज़िक्र किया है जिसमें गवाहों को कोई सुरक्षा नहीं दी गई.
कुछ लोगों का कहना है कि इससे पहले किसी गवाह ने सज्जन कुमार का नाम नहीं लिया. लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट का कहना है कि इससे पहले गवाहों को ठीक ढंग से सुना ही नहीं गया और उनके बयानों को गलत तरीके से ट्रांसलेट किया गया, जिसकी वजह से सज्जन कुमार को संदेह का लाभ (बेनिफिट ऑफ डाउट) मिल गया. कोर्ट ने कहा कि कि जगदीश कौर और जगशेर सिंह को भूलना नहीं चाहिए जिसकी वजह से सज्जन कुमार को सज़ा हुई. इन चश्मदीदों की गवाही से पता चलता है कि पूरे घटना की साज़िश पहले से ही रच ली गई थी.
जगदीश कौर और जगशेर सिंह दोनों 1 व 2 नवंबर 1984 की घटना बताते हैं. जगशेर सिंह ने कहा कि 1 नवंबर 1984 को रात के करीब 10 बजे शिव मंदिर के पास एक एंबेसडर कार आकर रुकी. तीस-चालीस लोग कार के पास इकट्ठे हो गए. कार में से सज्जन कुमार निकले और उन्होंने पूछा कि ‘काम हो गया है?’ इसके बाद सज्जन कुमार जगशेर सिंह के घर मे गए और बाहर आकर बोला कि तुम लोगों ने ठेकेदार के घर का सिर्फ दरवाज़ा ही तोड़ा है.
तो भीड़ में से एक आदमी ने बताया कि सिखों को हिंदू लोग बचा रहे हैं. ऐसा सुनकर सज्जन कुमार ने कहा जो हिंदू, सिखों को बचाने में लगे हैं और अपने घर में शरण दे रहे हैं, उनका भी घर जला दो. इसके बाद वो कार में बैठकर चले गए. सज्जन कुमार के जाने के बाद भीड़ ने जगशेर सिंह और उनके भाई के घर को लूटा और मोटर साइकिल व स्कूटर सहित घर को आग लगा दिया.
दूसरी गवाह जगदीश कौर ने बताया कि 2 नवंबर 1984 को जब वो रिपोर्ट लिखाने गईं तो उन्होंने देखा कि सज्जन कुमार वहां भीड़ से कह रहे थे कि ‘सिख साला एक नहीं बचना चाहिए, जो हिंदू भाई उसको शरण दे उसका घर भी जला दो और उन्हें भी मारो.’ उन्होंने कहा कि उन्होंने खुद एक पुलिस वाले को कहते हुए सुना कि कितने मुर्गे भून दिए.
ये दो गवाहियां हैं जिनके आधार पर हाई कोर्ट ने सज्जन कुमार को सज़ा सुनाई. हालांकि, बचाव पक्ष का कहना है कि जगदीश कौर ने कभी भी जस्टिस रंगनाथ मिश्रा कमीशन के सामने अपना नाम नहीं लिया, इसलिए इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता. जस्टिस रंगनाथ मिश्रा कमीशन का गठन राजीव गांधी ने घटना के छह महीने बाद मामले की जांच करने के लिए किया था. निचली अदालत ने सज्जन कुमार को संदेह का लाभ देते हुए सज्जन कुमार को बरी कर दिया था लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसले को बदल दिया.
बाद में यह भी कहा गया कि जगदीश कौर ने साल 2000 में एनडीए सरकार द्वारा बनाए गए नानावटी कमीशन के सामने भी सज्जन कुमार के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं बताया. लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट को जगदीश कौर और जगशेर सिंह का बयान भरोसेमंद लगा. हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों का ज़िक्र करते हुए गवाहों की सुरक्षा और उनके ट्रायल के लिए उचित माहौल बनाने की भी बात कही. ये भी कहा गया कि इसके पहले जगदीश कौर के बयानों में जिसमें उन्होंने सज्जन कुमार का नाम लिया था उसे पुलिस के रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं बनाया गया.
कोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया कि किस तरह से भीड़ के पास सिखों के घरों की लिस्ट थी. बिना पहले से योजना के ये संभव नहीं है. कुछ और गवाहों ने कोर्ट को बताया कि भीड़ के लोग वही नारे लगा रहे थे जिस नारे को लगाते हुए सज्जन कुमार देखे जाते थे. अब सुप्रीम कोर्ट में भी सज्जन कुमार के लिए ये बड़ी लड़ाई होगी क्योंकि क्योंकि सुप्रीम कोर्ट हमेशा गवाहों की सुरक्षा और उनके ट्रायल के लिए उचित माहौल का हवाला देता रहा है.