नई दिल्ली। कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अगुवाई में हुए विपक्ष के शक्ति प्रदर्शन पर तंज करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि विपक्ष का महागठबंधन सिर्फ मोदी के ही खिलाफ नहीं देश की जनता के भी खिलाफ है. दरअसल केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ महागठबंधन की कवायद जब से शुरू हुई है, तभी से बीजेपी नेताओं द्वारा विभिन्न मंचों और मीडिया विमर्श में यह कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी को हराने के लिए सभी दल एक हो गए हैं. आगामी लोकसभा चुनाव को बीजेपी ”मोदी vs ऑल” कह कर प्रचारित कर रही है.
लेकिन पहला सवाल तो यही है कि ”मोदी vs ऑल” की इस तस्वीर में सच्चाई कितनी है? क्या वाकई में पूरे देश में आगामी लोकसभा चुनाव ”मोदी vs ऑल” के आधार पर होगा? शनिवार को कोलकाता में विपक्ष की महारैली की तस्वीर ने एक बार फिर इस विचार को मजबूत किया है. लेकिन यह कहानी दो तथ्यों को छिपाती हुई देखी जा सकती है. पहला यह कि संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव राज्य स्तर पर लड़े जा रहे चुनाव का नतीजा होता है. दूसरा यह कि राज्यों में गठबंधन का बीजेपी को भी उतना ही फायदा मिला है, जितना उसके विपक्षी दलों को.
याद कीजिए साल 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान मोदी-शाह की सोशल इंजिनियरिंग के फॉर्मूले के आगे तमाम छोटे क्षेत्रीय दल बीजेपी के साथ गठबंधन को तैयार थे. इसका स्थानीय स्तर पर बीजेपी को फायदा हुआ और केंद्र में प्रचंड बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार बनी. लेकिन 2019 की सियासी बिसात में कश्मीर से कन्याकुमारी तक विभिन्न राज्यों की स्थिति पर नजर डालें तो ”मोदी vs ऑल” के पीछे की हकीकत साफ हो जाती है.
उत्तर प्रदेश-80 सीट
सीटों के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में हुए पिछले आम चुनाव में बीजेपी, अपना दल और ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के बीच गठबंधन था. वहीं आगामी लोकसभा चुनाव के लिहाज से देखें तो यूपी में यह दोनों दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अब भी खड़ें हैं. तो दूसरी तरफ सपा-बसपा-आरएलडी का गठबंधन है. जबकि कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ रही है. ऐसे में यूपी में दो तरह के गठबंधन आमने-सामने खड़े हैं और अगर कोई अकेला खिलाड़ी है तो वो कांग्रेस है न कि बीजेपी.
बिहार-40 सीट
दूसरे बड़े राज्य बिहार की सियासी हकीकत पर नजर डालें तो यहां आगामी चुनाव में बीजेपी, नीतीश कुमार की जेडीयू और रामविलास पासवान की एलजेपी के साथ गठबंधन का ऐलान कर चुकी है. यही नहीं बीजेपी ने यहां 2 सांसदों वाली जेडीयू को 17 सीटें दी हैं. जबकि एनडीए गठबंधन के सामने कांग्रेस, लालू यादव की आरजेडी, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा, शरद यादव की लोकतांत्रिक जनता दल और वाम दलों का गठबंधन है. लिहाजा यहां भी चुनाव मोदी vs ऑल नहीं, बल्कि गठबंधन बनाम गठबंधन होना है.
महाराष्ट्र-48 सीट
महाराष्ट्र में भी आगामी चुनाव में पहले से तय गठबंधन के दलों के बीच मुकाबला है जैसा कि 2014 में था. जहां एक तरफ बीजेपी-शिवसेना है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस-एनसीपी. हालांकि शिवसेना बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी को लेकर पिछले कुछ दिनों से हमलावर है लेकिन कांग्रेस-एनसीपी को रोकने के लिए दोनों दल गठबंधन बरकरार रख सकते हैं.
पश्चिम बंगाल-42 सीट
देश में सीटों के लिहाज से किसी बड़े राज्य में अगर प्रधानमंत्री मोदी अकेले खड़े हैं तो वो है पश्चिम बंगाल. लेकिन यहां मुकाबला मोदी vs ऑल न होकर मोदी vs ममता होगा. यहां विधानसभा चुनाव वाम दलों के साथ लड़ी कांग्रेस की राज्य इकाई अभी तय नहीं कर पाई है कि वे टीएमसी के साथ जाएं या वाम दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ें.
तमिलनाडु-39 सीट
तमिलनाडु में सत्ताधारी एआईएडीएमके केंद्र में मोदी सरकार की सहयोगी मानी जाती है और उम्मीद है कि फिल्म स्टार रजनीकांत के नए दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़े. हालांकि एआईएडीएमके ने हाल में तीन तलाक विधेयक के मुद्दे पर मोदी सरकार का विरोध किया था. जबकि दूसरी तरफ डीएमके कांग्रेस, वाम दलों का गठबंधन है और यह माना जा रहा है कि फिल्म स्टार कमल हासन की नई पार्टी भी इस गठबंधन में शामिल होगी. इस लिहाज तमिलनाडु में भी मुकाबला गठबंधन बनाम गठबंधन या गठबंधन बनाम एआईएडीएमके बनाम बीजेपी होने के आसार हैं न कि मोदी vs ऑल.
केरल-20 सीट
केरल में एक तरफ लेफ्ट का गठबंधन एलडीएफ है तो दूसरी तरफ कांग्रेस के नेतृत्व में यूडीएफ खड़ी है, वहीं तीसरा कोण बीजेपी गठबंधन का है. और यह तीनों एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं. लिहाजा यहा भी मोदी vs ऑल नहीं है.
कर्नाटक-29 सीट
देश में कर्नाटक ही ऐसा राज्य है जहां यह कहा जा सकता है कि यहां मुकाबला मोदी बनाम गठबंधन है. यहां विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ी कांग्रेस और जेडीएस बीजेपी को रोकने के लिए साथ में सरकार चला रहे हैं. ऐसा माना जा रहा है कि दोनो दल लोकसभा का चुनाव साथ लड़ेंगे.
पूर्वोत्तर-25 सीट
पूर्वोत्तर के आठ राज्यों की बात करें तो यहां भी बीजेपी या उसकी सहयोगी क्षेत्रीय दल सत्ता में हैं. सीटों के लिहाज से पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम में बीजेपी-बोडो पिपल्स फ्रंट का गठबंधन बनाम असम गण परिषद बनाम कांग्रेस बनाम बदरुद्दीन अजमल की ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक फ्रंट के बीच मुकाबला है. असम गण परिषद इससे पहले बीजेपी की सहयोगी रही है, लेकिन सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल को लेकर उसने समर्थन वापस ले लिए. जबकि बदरुद्दीन अजमल कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात कह चुके हैं. बीजेपी की सहयोगी दल नेशनल पीपुल्स पार्टी जो कि मेघालय और मणिपुर में साझा सरकार चला रही है, ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया है. पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में बीजेपी की लड़ाई या तो कांग्रेस से है या फिर क्षेत्रीय दलों से है. इस लिए यहां भी मोदी vs ऑल का सीन नहीं बन रहा.
मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़-65 सीट
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में शुरू से ही कांग्रेस और बीजेपी में सीधा मुकाबला रहा है. लेकिन यहां भी क्षेत्रीय दल अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. हाल में हुए विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में सपा, बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी अलग चुनाव लड़ी थीं. राजस्थान में भी भारतीय ट्राइबल पार्टी, बीएसपी और हनुमान बेनीवाल की पार्टी अकेले चुनाव लड़ी थी. जबकि छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी और बीएसपी के बीच गठबंधन था. लिहाजा इन राज्यों में कांग्रेस-बीजेपी के बीच मुख्य मुकाबला होने के बावजूद क्षेत्रीय दल इन दोनों पार्टियों से लड़ रहे हैं. इसलिए यहां भी मोदी vs ऑल की तस्वीर बनती नहीं दिखती.
पंजाब, हरियाणा, दिल्ली-30 सीट
छोटे राज्यों की बात करें तो पंजाब में कांग्रेस अकेले खड़ी है, दूसरी तरफ बीजेपी-अकाली का गठबंधन है तो वहीं तीसरा कोण आम आदमी पार्टी का है. इसलिए यहां का मुकाबला कांगेस बनाम बीजेपी-अकाली बनाम AAP होगा न कि मोदी vs ऑल. दिल्ली की बात करें तो यहां भी कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी तीनों दल एक-दूसरे से लड़ते हुए दिख रहे है. जबकि हरियाणा का मुकाबला त्रीकोणीय है जिसमे-कांग्रेस, बीजेपी और आईएनएलडी के बीच मुकाबला है. तो यह मुकाबला मोदी vs ऑल कैसे हुआ?