सुरेन्द्र किशोर
मुख्य मंत्री नीतीश कुमार और डी.जी.पी गुप्तेश्वर पांडेय पुलिसतंत्र को चुस्त करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। बार -बार उच्चस्तरीय बैठकें हो रही हैं। पर, इन बैठकों का फील्ड अफसरों पर कम ही असर हो रहा है। सरकारी योजनाओं की प्रगति और कर्मियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए सरकारी धावा दल भी सक्रिय हैं। कर्मी घूस लेते पकड़े भी जा रहे हैं। पर भ्रष्टाचार है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है।
अपने मुख्यमंत्रित्व काल के प्रारंभिक दिनों में नीतीश कुमार ने लोगों से अपील की थी कि वे उन भ्रष्ट सरकारी कर्मियों का स्ंिटग आपरेशन करें जिन पर घूस लेने का अक्सर आरोप लगता है। बिहार प्रशासनिक सेवा संघ ने इसका सार्वजनिक रूप से विरोध कर दिया। तर्क था कि इससे प्रशासन में पस्तहिम्मती आएगी। पर, सवाल है कि तब से अब तक प्रशासनिक सेवा संगठनों ने अपने बीच व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए क्या किया ? दूसरी ओर, सरकारी दफ्तरों की इस मामले में हालत बिगड़ती ही जा रही है। इसलिए कुछ अन्य उपाय भी करने होंगे। दरअसल धावा दल के साथ -साथ शासन को चाहिए कि वह स्ट्रिग आपरेशन भी कराए।
यह काम प्रामाणिक एजेंसियों को सौंपा जा सकता है। या कोई व्यक्ति स्वयं करता है तो सरकार उसे अच्छा -खासा इनाम देकर प्रोत्साहित करे। आज भी आयकर महकमा उन लोगों को भारी इनाम देता है जो कर वंचकों के बारे में जानकारियां देते हैं।
सत्तर के दशक में इंदिरा गांधी के शासन काल में काला धन के बारे में सूचना देने वालों के लिए इनाम देने का प्रावधान था। सही सूचना देने पर एक बार चंद्रशेखर को , जो बाद में प्रधान मंत्री बने, भी सरकार ने इनाम दिया था। बिहार में कुछ सरकारी कर्मियों के बारे में यह कहा जाता है कि वे आॅफिस आने के लिए वेतन लेते हैं और काम करने के लिए नजराना और शुकराना। ऐसे ‘नजराना-शुकराना’ वालों के खिलाफ शासन को जो सूचना मुहैया कराए या फिर स्टिंग आपरेशन के साथ सबूत कोई दे तो राज्य सरकार को चाहिए कि वह उन्हें इनाम दे। अब तो स्मार्ट फोन अनेक हाथों में रहता है। इसलिए स्टिंग का काम आसान है।
(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से)