अजीत अंजुम
उस बेटी को अपनी मर्जी का साथी चुनने का हक था. परिवार से बगावत करके भी चुना तो सही किया. अगर पिता या परिवार उसके जीवन को कंट्रोल करना चाहते थे, तो उसने सही किया कि बगावत करके शादी की. अगर उसकी जान को खतरा था तो उसने मीडिया से गुहार लगाई, ये भी सही था लेकिन अब जिस तरह से वो अपनी मां को अपनी ज़िंदगी का विलेन साबित करने के लिए किस्सागोई कर रही है, क्या इसकी ज़रूरत है ?
वो लगातार बचपन से लेकर अब तक कहानी सुनाकर मां-बाप को जमाने की नज़र में नफरत का किरदार बनाने में जुटी है, क्या अब इसकी ज़रूरत है? आपने बगावत की. मन के मुताबिक शादी की. डर और खतरे के खिलाफ दुनिया, समाज, मीडिया और सिस्टम को आगाह कर दिया. अब क्या करना चाहती हो? मैं पहले दिन से उस लड़की के साथ था और हूं लेकिन अब कुछ सवाल मेरे मन में उग आए हैं?
बाप ने कह दिया कि आप अपनी दुनिया में मस्त रहो. कोई मतलब नहीं रखो. मत रखो, लेकिन लगातार अपनी माँ को, पिता को इतना जलील करने की ज़रूरत है क्या? चार दिन पहले एक वीडियो के जरिए सुर्खियों में आई साक्षी मिश्रा अब अपनी परवरिश के दौरान मां के हर बर्ताव और हर नसीहत के लिए उनके नाम लानत भेज रही है, ये वो बातें हैं जो कोई भी माँ अपनी बेटी को कहती है. क्या इसकी जरूरत थी?
साक्षी की लड़ाई तब तक थी जब तक उसके पिता उसके दुश्मन बनकर उसके पीछे थे या उसकी जान को खतरा था लेकिन अब जब बात सरेआम हो गई और पिता ने मान लिया कि मेरी बालिग बेटी ने शादी कर ली है तो उन्हें जैसे जीना हो जिये तो फिर बाप के खिलाफ लगातार मुहिम चलाने की ज़रूरत है क्या?
मान लिया कि साक्षी के पिता ने उसकी शादी नहीं होने देने की हर मुमकिन कोशिश की. मान लिया कि उसके पिता शादी के बाद उसकी तलाश करवा रहे थे, मान लिया कि उसकी जान को खतरा था लेकिन अब तो ऐसी कोई बात नहीं. विधायक पिता सरेंडर कर चुके हैं. बेटी की लानतों की मार खा खाकर सुना है मां बीमार हो गई है तो क्या बेटी को अब भी मां के बारे में ऐसे ‘किस्से’ सुनाने का सिलसिला जारी रखना चाहिए जिससे उनके प्रति जमाने की नज़र में हिकारत, नफरत और जलालत भाव पैदा होता रहे?
क्यों साक्षी? अब ये सब करने की ज़रूरत है क्या?
तुमने अपने जीने का रास्ता तैयार कर लिया. आपने साथी चुन लिया. बागी होकर उन रिश्तों से निकल गयी, जो तुम्हारे रास्ते में बाधा थे. अब उन पर इतना प्रहार करने की क्या ज़रूरत है? उन्हें भी जीने दो.
हां अगर अब भी उनसे तुम्हारी जान को खतरा है या रिश्ते को खतरा है तो पुलिस की मदद लो. सिर्फ पुलिस की. तुम्हारे पिता कितने भी ताकतवर हों लेकिन अब पुलिस यकीनन तुम्हारा साथ देगी क्योंकि कहानी अब दुनिया के सामने है. और जब पुलिस तुम्हारी मदद न करे फिर तुम मीडिया के सामने आओ. हम सब लोग तुम्हारे माता-पिता के खिलाफ साथ होंगे.
तुम्हारी बातों से लगता है तुम्हारे भीतर अपने माँ बाप को लेकर गुस्से का गुबार है. इसकी वो सारी वजहें हो सकती हैं जो तुमने बताई और गिनाई हैं. लेकिन अब हो गया न. तुम्हारा गुस्सा निकल गया. तुम्हें तुम्हारे मन का साथी मिल गया. ससुर और ससुराल मिल गया. माँ बाप के बंधन से मुक्त आशियाना मिल गया. अब अपनी राह बनाओ, उन्हें उनके हाल पर छोड़ दो. हो सके तो बीमार का हाल जानने की कोशिश करो और माँ बाप को टारगेट करना छोड़कर अपनी दुनिया बनाओ.
प्लीज साक्षी, अब नए रिश्ते को सहेजो, लेकिन मां-बाप को इतना शर्मसार न करो…
(चर्चित टीवी पत्रकार अजीत अंजुम के फेसबुक वॉल से)