शीला दीक्षित ने दिल्ली के विकास का ब्लू प्रिंट तैयार किया
दिल्ली में फ्लाईओवर का पूरा खाका शीला सरकार ने बनाया
दिल्ली में मेट्रो विस्तार, शीला दीक्षित की प्लानिंग का नतीजा
शीला दीक्षित 3 दिसंबर 1998 को दिल्ली के लिए नया दौर लेकर आईं. संयोग के नए झोंकों के साथ वह उस दिन दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी थीं. संयोग इसलिए क्योंकि शीला दीक्षित को उसी साल दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान मिली थी. उसी साल प्याज की कीमत में आग लगी और दिल्ली में मजबूत जड़ों वाली बीजेपी को तिनके की तरह उड़ जाना पड़ा.
वो 1998 की दिल्ली थी जब सड़क पर ब्लू लाइन बसें तांडव करती नजर आतीं थी. जब दिल्ली की सड़कों पर वाहनों का लंबा रेला लगता था, जब दिल्ली में घर से दफ्तर पहुंचना ओलंपिक में मेडल जीतने जैसा था. शीला को ऐसी दिल्ली मंजूर नहीं थी. 2019 की जिस दिल्ली पर हम रश्क करते हैं, उसकी बुनियाद शीला दीक्षित ने दो दशक पहले ही रख दी थी.
शीला दीक्षित ने 1998 में मुख्यमंत्री बनने के बाद दिल्ली के विकास का ब्लू प्रिंट तैयार किया. राष्ट्रीय राजधानी में लंबे-लंबे फ्लाइओवर का पूरा खाका शीला सरकार ने तैयार किया. दिल्ली की लाइफ लाइन कही जाने वाली मेट्रो को जो विस्तार मिला वो शीला दीक्षित की ही प्लानिंग का नतीजा है और दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स की कामयाबी का श्रेय शीला दीक्षित को ही जाता है.
शीला दीक्षित ने सियासत में नई शब्दावली दी विकास और तरक्की की शब्दावली. मंदिर आंदोलन के बाद तेजी से आगे बढ़ रही बीजेपी को शीला दीक्षित ने बड़ी बारीकी से विकास के अस्त्र से सत्ता से बाहर कर दिया. शीला दीक्षित ने दिखा दिया कि विकास के बल पर भी चुनाव जीते जाते हैं और वर्चस्व कायम किया जाता है.
सियासत की मान्य कलाओं से देखें तो शीला दीक्षित का इतने लंबे समय तक टिके रहना हैरान कर देने वाला है. उन्हें लच्छेदार भाषण देना नहीं आता था. उन्हें दलीय राजनीति की पेचीदीगियों की ज्यादा जानकारी नहीं थी. वो कांग्रेस के अंदरूनी सत्ता समीकरण में भी बेहद सहज नहीं थी, लेकिन उन्हें अपनी मंजिल का पता था. उन्हें पता था राजनीति में उनका रास्ता विकास की गलियों से ही गुजरेगा.
पूरे 15 साल शीला दीक्षित दिल्ली की अजीज रहीं. इतनी अजीज कि एक दौर में वो अजेय थीं. इतनी अजेय कि शीला के बगैर दिल्ली अधूरी दिखती थी. आज शीला दीक्षित ने उसी दिल्ली को अलविदा कह दिया.