नई दिल्ली। गलवान घाटी में भारत-चीन सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प पर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर सवाल खड़े किए हैं. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि चीनी सैनिकों के हमले में शहीद हुए सेना के अधिकारी और जवानों के लिए देश क्षुब्ध है, लेकिन प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ने पूरी तरह से चुप्पी साध ली है. क्या यही राजधर्म है? इस स्थिति में प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री को आगे आकर देश को जवाब देना चाहिए.
भारत-चीन विवाद पर कांग्रेस ने ये कुछ सवाल पूछे हैं…
1- क्या ये सच है कि चीनी सेना ने गलवान घाटी में भारतीय सेना के एक अधिकारी और सैनिकों को मार डाला है? क्या ये सही है कि अन्य भारतीय सैनिक भी इस हमले में गंभीर रूप से घायल हुए हैं? यदि हां, तो पीएम मोदी और रक्षा मंत्री चुप्पी क्यों साधे हुए हैं?
2- भारतीय सेना के कथित बयान के मुताबिक, हमारी सेना के उच्च अधिकारी और सैनिक कल रात उस समय शहीद हुए थे, जब डि-एस्केलेशन की प्रक्रिया गलवान घाटी में चल रही थी.
क्या प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री इस बात पर राष्ट्र को विश्वास में लेंगे कि हमारे अधिकारी और सैनिक ऐसे समय में कैसे शहीद हो सकते हैं जबकि चीनी सेना कथित तौर पर गलवान घाटी के हमारे क्षेत्र से कब्जा छोड़कर वापस जा रही थी? केंद्रीय सरकार बताए कि हमारे उच्च सेना अधिकारी और सैनिक कैसे और किन परिस्थितियों में शहीद हुए?
अगर हमारे अधिकारी और सैनिकों के शहीद होने का यह वाक्या कल रात हुआ था, तो आज दोपहर 12.52 बजे बयान क्यों जारी किया गया और 16 मिनट बाद ही यानि दोपहर 1.08 बजे बयान क्यों बदला गया?
क्या प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री अब आगे बढ़कर देश को यह बताने का साहस करेंगे कि अप्रैल/मई 2020 तक भारत की सीमा के कितने क्षेत्र में चीन ने अवैध कब्जा कर लिया है?
ये भी बताएं कि वे कौन से हालात व स्थिति हैं, जिनके चलते हमारे बहादुर सैन्य अधिकारी व सैनिकों की शहादत हुई है, जबकि चीनी सैनिकों को भारतीय सीमा से पीछे हट ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ तक जाने के लिए मजबूर किया जाना था? क्या प्रधानमंत्री राष्ट्र को विश्वास में लेंगे?
4- क्या प्रधानमंत्री बताएंगे कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता के लिए पैदा हुई इस चुनौतीपूर्ण व गंभीर स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार की नीति क्या है?
कांग्रेस पार्टी का यह मानना है कि पूरा देश राष्ट्रीय सुरक्षा और भूभागीय अखंडता की रक्षा के लिए एकजुट है, लेकिन मोदी सरकार को ये याद रखना होगा कि संसदीय प्रणाली में शासकों की गोपनीयता या चुप्पी का कोई स्थान नहीं है.