सुरेन्द्र किशोर
फिर भी यदि हम चीन से एक मंत्र सीख लें तो हम इतने मजबूत हो जाएंगे कि चीन कभी भी हमारी ओर आंख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं कर पाएगा। हमें यह सीखना चाहिए कि चीन सरकार अपने यहां के भ्रष्टाचारियों से कैसे निपटती है। साथ ही, अपने यहां के आंतरिक विद्रोहियों के साथ चीन सरकार कैसा सलूक करती है। इन दोनों मामलों में आजादी के बाद से ही हमारी सरकारें लचर रवैया अपनाती रही हैं। हाल के वर्षों में हमारे यहां इन मामलों में थोड़ा सुधार जरूर हुआ है,पर अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
2013 में चीन में पूर्व रेल मंत्री लिऊ झिजुन को फांसी की सजा सुनाई गई थी। उस पर रिश्वत लेने का आरोप था। बाद में उसे आजीवन कारावास में बदल दिया गया। दूसरी ओर, हमारे यहां जो जितना भ्रष्ट है, उसके उतने ही बड़े पद पर जाने की संभावना बनी रहती है। हमारे यहां भी यदि बड़े भ्रष्टों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान हो जाए तो फर्क आ सकता है। पर, इससे उलट हमारे यहां आजादी के बाद से ही भ्रष्टाचार की तरफ से शीर्ष सत्ता ने आंखें मूंद रखी थीं। 13 साल तक जवाहरलाल नेहरू के निजी सचिव Rahe मथाई के अनुसार, ‘‘आजादी के प्रारंभिक वर्षों में ही उनके मंत्रिमंडल के सदस्य सी.डी.देशमुख ने प्रधान मंत्री से कहा था कि मंत्रियों में बढ़ रहे भ्रष्टाचार की खबरें मिलने लगी हैं।
आप एक ऐसी उच्चस्तरीय एजेंसी बना दें जो भ्रष्टाचार की उन शिकायतों को देखे। इस पर नेहरू ने कहा कि ऐसा करने से मंत्रियों में पस्तहिम्मती आएगी जिसका विपरीत असर सामान्य सरकारी कामकाज पर पड़ेगा।’’ लगता है कि आज भी प्रमुख प्रतिपक्षी दल कांग्रेस की राय लगभग वही है।
राहुल गांधी के अनौपचारिक सलाहकार नोबल विजेता अभिजीत बनर्जी ने अक्तूबर, 2019 में कहा था कि ‘‘चाहे यह भ्रष्टाचार का विरोध हो या भ्रष्ट के रूप में देखे जाने का भय,शायद भ्रष्टाचार अर्थ व्यवस्था के पहियों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण था, इसे काट दिया गया है। मेरे कई व्यापारिक मित्र मुझे बताते हैं निर्णय लेेने की गति धीमी हो गई है।