सर्वेश तिवारी श्रीमुख
राजस्थान में एक ब्राह्मण पुजारी को जिंदा जला दिया गया। किसी को पेंड़ में बांध कर जीवित जला दिये जाने की कल्पना भर कीजिये, रोंआ सिहर उठेगा। यह सामान्यतः भारतीय व्यवहार नहीं है। ऐसा पहले नहीं होता था…
राजस्थान ही नहीं, यूपी में भी हर तीसरे दिन किसी न किसी ब्राह्मण को क्रूरता से मार देने की खबर आ ही जाती है। इन घटनाओं पर न राजनैतिक प्रतिक्रिया आती है, न मुख्यधारा की मीडिया बोलती है। जैसे उनके लिए ब्राह्मणों की हत्या कोई मुद्दा ही नहीं। सोशल मीडिया पर आम लोग भी मुखर होते हैं पर पार्टी लाइन का ध्यान रखते हुए। मतलब कांग्रेस वाले यूपी की घटना पर बोलेंगे पर राजस्थान पर नहीं। वहीं भाजपा वाले यूपी की घटना पर मौन साध लेते हैं।
सोच कर देखिये, यह दशा एक दिन में नहीं हुई। पूरे सत्तर वर्ष लगे हैं ब्राह्मणों को इस दशा में लाने में। सरकार, मीडिया, लेखक, सिनेमा और कथित बुद्धिजीवी सत्तर वर्षों तक लगातार प्रयास करते रहे हैं, तब जा कर समाज में ब्राह्मणों के प्रति यह घृणा उपजी है। इन पांचों ने लगातार यह बताया है कि ब्राह्मण क्रूर होते हैं, अत्याचारी होते हैं, ठग होते हैं। इनसे घृणा ही की जानी चाहिए।
आश्चर्य न कीजिये, अपने आसपास देखिये। इस देश का लगभग हर राजनैतिक दल ब्राह्मण विरोध के बल पर चल रहा है। हर नया नेता ब्राह्मणों को गाली दे कर हिट होता है। हर लेखक अपनी किताब बेचने के लिए ब्राह्मणों पर तंज कसता है। हर निर्देशक अपनी फिल्म में ब्राह्मणों का विरोध करता है। यहाँ ब्राह्मण शब्द को ही अत्याचार का प्रतीक बना दिया गया है। और कोई इसका विरोध नहीं करता, बल्कि सरकारें उसका मूक समर्थन करती रही हैं। देश में कुछ जातियां ऐसी हैं कि उनका नाम ले लेने भर से व्यक्ति जेल जा सकता है, वहीं ब्राह्मण को सरेआम मंचों से गाली देना कोई अपराध नहीं। यह हमारे देश के न्याय की न्यायप्रियता है।
आज के समय में लगभग हर जाति की अपनी पार्टी है; हर जाति अपने अधिकारों के लिए मुखर हो कर बोलती है, पर उन्हें जातिवादी नहीं माना जाता। पर ब्राह्मण अपने लिए नहीं बोल सकता। ब्राह्मणों के विषय में बोलते ही व्यक्ति जातिवादी, मनुवादी और जाने क्या क्या हो जाता है। सबके मन में बसा हुआ है कि ब्राह्मणों का समर्थन क्यों करना! वे तो शोषक हैं… मरते हैं तो मरें…
हमारे देश में भीख मांगता ब्राह्मण भी शोषक और अत्याचारी है, पर आठ बार सांसद रहने वाले स्वर्गीय रामविलास जी के पुत्र चिराग(जिनकी मां ब्राह्मण हैं) दलित हैं।
जानते हैं। इस दशा के लिए ब्राह्मण भी कम जिम्मेवार नहीं हैं। ब्राह्मण कभी स्वयं के लिए मुखर हुए ही नहीं। उन्हें गालियां दी जाती रहीं, वे चुपचाप सुनते रहे। उन्हें ठग, गुंडा, शोषक आदि आदि कहा जाता रहा, वे मुस्कुरा कर टालते रहे। धीरे धीरे समाज ने मान भी लिया कि सचमुच में वे ऐसे ही हैं। दिल्ली के किसी बड़े बंगले में रहने वाला चौदह वर्ष का लड़का जिसने जाति व्यवहार देखा भी नहीं, आज वाट्सप-फेसबुक पर पढ़ कर वह भी जानता है कि ब्राह्मण बुरे होते हैं।
आज राजनीति में भी ब्राह्मणों के लिए कहीं स्थान नहीं। मेरे बिहार में ही देख लीजिए, अभी चुनाव चल रहे हैं। बिहार में ब्राह्मणों की संख्या लगभग 6% है पर किसी पार्टी ने ब्राह्मणों को टिकट नहीं दिया। बिहार के ब्राह्मण पच्चीस वर्षों से जिस नीतीश के कोर वोटर हैं, उन्होंने भी कुल 122 सीटों में केवल एक ब्राह्मण को टिकट दिया है। शेष की भी यही दशा है।
जाति हमारे देश का प्रमुख सत्य हो चुका है। हम जैसे कुछ लोग जातिवाद का विरोध करते हैं, पर उससे होता कुछ नहीं। हमारा संविधान ही जाति का समर्थन करता है, तो लोग कैसे न करें। लोग उसी हिसाब से सोचने भी लगे हैं। इस लेख को ही देख लीजिए; मैं कह रहा हूँ कि हर जाति के लिए समान व्यवहार होना चाहिए, पर असँख्य ऐसे आएंगे जो इसे जातिवादी सिद्ध कर के चले जायेंगे। ऐसी दशा में यदि किसी भी जाति के लोगों को अपना संहार नहीं कराना है, तो उन्हें स्वयं के लिए मुखर होना पड़ेगा। नहीं होंगे तो ब्राह्मणों की तरह रोज मारे जाते रहेंगे।
मैं यह नहीं कहता कि ब्राह्मण दूसरों से घृणा करें। यह काम जो कर रहे हैं उन्हें ही करने दिया जाय। मैं यह कह रहा हूँ कि ब्राह्मण भी अपने अधिकारों के लिए मुखर हों। नहीं तो रोज ही कोई न कोई पेंड़ में बांध कर जलाया जाता रहेगा। अपने लिए आप नहीं बोलेंगे तो कोई और क्यों बोलेगा?