जो दूसरे सोच नहीं सकते वो इग्लैंड ने कर दिखाया, ऐसे जीता दो-दो वर्ल्ड कप, जानें पूरी कहानी

बीते रविवार को इंग्लैंड ने पाकिस्तान को हराया और क्रिकेट की दुनिया को टी-20 फॉर्मेट का नया चैम्पियन मिला. इंग्लैंड ने दूसरी बार ट्रॉफ़ी उठायी और बीते 3 सालों में हुए 3 में से 2 विश्व कप जीत लिये. 2015 के ODI विश्व कप में ये टीम नॉकआउट स्टेज में भी नहीं पहुंची थी. और यहां जो मैच हुए उसमें इंग्लैंड को छोटी-मोटी हार नहीं मिलीं. न्यूज़ीलैंड ने उन्हें 8 विकेट से हराया. ऑस्ट्रेलिया ने 111 रनों से. श्रीलंका ने तो 1 ही विकेट खोकर 300 के ऊपर का टार्गेट चेज़ कर डाला. अगले साल इस टीम ने टी-20 विश्व कप का फ़ाइनल खेला. यहां उसे आख़िरी ओवर में हार मिली. यहां से इंग्लिश क्रिकेट की मनोवृत्ति में बड़ा बदलाव आता दिखा.

सबसे पहला अच्छा काम हुआ एंड्रयू स्ट्रॉस का आना. स्ट्रॉस ने इंग्लैंड के क्रिकेट को मैदान पर बहुत कुछ दिया. और फिर जब वो इंग्लैंड क्रिकेट के डायरेक्टर बनकर आये तो अपने साथ नयी और अनोखी चीज़ें लाये. स्ट्रॉस को दिख रहा था कि टेस्ट क्रिकेट को तवज्जो मिलने के कारण इंग्लैंड का सीमित ओवरों का क्रिकेट पीछे रह रहा था. खिलाड़ियों पर भी रेड बॉल का अच्छा खिलाड़ी बनने का दबाव था. उन्होंने ‘व्हाइट-बॉल कॉन्ट्रैक्ट’ की शुरुआत की. अब सीमित ओवर के खिलाड़ियों को छूट थी कि वो अपने खेल पर फ़ोकस करें. इन खिलाड़ियों को कितना पैसा मिलना था, ये उनकी परफॉरमेंस के आधार पर मिलने वाली रैकिंग पर आधारित होना था. इससे मैदान में गेंद को पीटने वाले बल्लेबाज़ों की बढ़िया फसल पनपनी तैयार हुई. जेसन रॉय, मलान, एलेक्स हेल्स, टॉम कुरेन, जॉर्डन आदि खिलाड़ी इन्हीं कॉन्ट्रैक्ट्स के बूते आगे बढ़े और दुनिया ने उन्हें देखा.

एंड्रयू  स्ट्रॉस

2015 के बाद सभी बड़ी टीमों के आंकड़ों को देखें तो 2019 विश्व-कप की जीत तक जीत-हार के अनुपात में इंग्लैंड (भारत के बाद) दूसरे नम्बर पर था. जीत और हार के बीच अंतर बढ़ा ताबड़तोड़ क्रिकेट की बदौलत. इसके लिये इंग्लिश क्रिकेट का बहुत बड़ा हिस्सा ट्रेवर बेलिस को क्रेडिट देता है. 2019 के विश्व कप तक इंग्लैंड की टीम में ऐसे खिलाड़ी आये जिनकी बदौलत 9 नंबर तक के खिलाड़ी बल्ला घुमा सकते थे. भारत समेत कई बड़ी टीमें 7 नंबर के बाद नील बटे सन्नाटा हो जाती हैं. यही वजह है कि इंग्लैंड की टीम को कई मौकों पर बहुत बड़े स्कोर बनाते देखा गया. 2015 के बाद से अगले वनडे वर्ल्ड कप तक, रन-रेट के मामले में 6.29 रन प्रति ओवर के साथ इंग्लैण्ड सबसे ऊपर रहा.

मैथ्यू मॉट बतौर कोच कर रहे कमाल

अमूमन, टीम बनाते वक़्त फॉर्मेट के अनुरूप खिलाड़ियों को जगह दी जाती है. ऐसे में एक ही कोचिंग स्टाफ़ अलग-अलग खिलाड़ियों के अलग-अलग सेट्स के साथ डील करता है. लेकिन इंग्लिश बोर्ड ने न केवल सफ़ेद और लाल रंग की गेंदों के अलग-अलग खिलाड़ी तैयार करने शुरू किये, बल्कि कोचिंग स्टाफ़ में भी ये लकीर खींची. आज लिमिटेड ओवर के लिये जहां मैथ्यू मॉट आते हैं वहीं टेस्ट क्रिकेट के लिये न्यूज़ीलैंड के पूर्व स्टार खिलाड़ी ब्रेंडन मैकलम को कोच की कुसी मिली हुई है. बीते टेस्ट सीज़न में मैकुलम के ‘बैज़बॉल’ का हल्ला था. और अब, ऑस्ट्रेलिया में टी-20 जीतने के बाद मैथ्यू मॉट की चर्चा है.

मैथ्यू मॉट

मौजूदा कप्तान बटलर के साथ मॉट की जुगलबंदी सराही जा रही है और देखा जा सकता है कि दोनों एक ही पेज पर हैं. तीन साल में वो दो बार टी-20 विश्व-कप ट्रॉफ़ी उठा चुके हैं. मैथ्यू 2020 में हुए महिलाओं के टी-20 विश्व-कप में ऑस्ट्रेलिया टीम के कोच थे. मॉट एक ऐसे समय पर आये थे जहां इंग्लैंड के बेहद सफ़ल कप्तान इयोन मॉर्गन (नीदरलैंड के दौरे के बाद) जा रहे थे और इंग्लैंड एक नेतृत्व की तलाश में था. ऐसे में उन्हें बटलर का साथ मिला और नयी संगत शुरू हुई. हालांकि इंडिया और साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ हुई लिमिटेड ओवर की सीरीज़ इंग्लैंड के पक्ष में नहीं आयीं लेकिन पाकिस्तान में बात बनती दिखी और टीम ने मेज़बानों को 4-3 से हराया.

लेकिन बटलर और मॉट के पहले एक और नाम है जिसे बहुत सारा क्रेडिट मिलना चाहिये – इयोन मॉर्गन. मॉर्गन जब रिटायर हुए तो एकदिवसीय विश्व कप जीतने वाले पहले इंग्लिश कप्तान थे, इंग्लैंड के लिये सीमित ओवरों में सबसे ज़्यादा मैच खेलने वाले और सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी थे (हाल ही में बटलर ने टी-20 में उन्हें पीछे किया). मॉर्गन ने अपनी कप्तानी में 60% मैच जीते. उनका जीत-हार का अनुपात 1.9 का है. वो जब कप्तानी करने के लिये आये, टीम में उथल-पुथल का दौर था. उनसे पहले एलिस्टर कुक को पद से हटाया जा रहा था और वो गद्दी मॉर्गन को मिल रही थी. 2 महीने में विश्व-कप शुरू होने को था. यहां से टीम में, उसके मैनेजमेंट में बदलाव की बयार बहनी शुरू हुई. मॉर्गन ज़हनी तौर पर लिमिटेड ओवर के खिलाड़ी थे.

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मैदान पर अक्सर भावशून्य भी मालूम देते थे. हमने देखा है कि ऐसे कप्तानों की छत्रछाया में खिलाड़ियों को अच्छी ज़मीन मिलती है. मॉर्गन के केस में भी वही हुआ. बेन स्टोक्स और अंतिम दौर में जोफ्रा आर्चर की आमद ने इंग्लैंड को और मज़बूत और सुदृढ़ बनाया. बेन स्टोक्स ने जब आख़िरी ओवर में 4 छक्के दिए और इंग्लैण्ड ने वर्ल्ड कप गंवाया, तो मॉर्गन ने अपनी ग़लती मानी और कहा कि उन्हें दबाव के क्षणों में स्टोक्स के साथ होना चाहिये था. स्टोक्स उस वक़्त नये थे. 2019 में इन दोनों खिलाड़ियों के अनुभव और इंग्लैंड के निडर खेल ने उन्हें ट्रॉफ़ी दिलायी.

मॉर्गन ने 2016 के टी-20 विश्व कप फ़ाइनल में टॉस के दौरान कहा था कि उन्हें गर्व है कि उनकी टीम अच्छे मानसिक क्षेत्र में थी और वो अपने मुताबिक़ खेल को धीमा कर सकते हैं और ज़रूरत के मुताबिक़ अपनी स्किल को काम में ला सकते हैं. वही मंत्र 6 साल बाद काम में आता दिखा. पाकिस्तान की तीखी गेंदबाज़ी को कभी भी इंग्लैंड ने हावी नहीं होने दिया और किसी भी पाकिस्तानी गेंदबाज़ को लम्बे समय तक एक ही लाइन पर टिके रहने नहीं दिया. चाहे सेमी फ़ाइनल में इंडिया के ख़िलाफ़ हो या फ़ाइनल में पाकिस्तान के ख़िलाफ़, इंग्लैंड अपने मुताबिक़ खेल को कंट्रोल करते दिखी. सफ़ेद गेंद के लिये एक अलग सेट-अप तैयार करना, कुक को हटाकर मॉर्गन को लाना, रन बनाने वाली पिचें बनाना, ये सब कुछ उस पूरे उपक्रम का हिस्सा था जिसका अंतिम लक्ष्य लिमिटेड ओवर के खेल में इंग्लैंड को टॉप पर पहुंचाना था. और इसमें ये टीम, इससे जुड़े लोग पूरी तरह से सफल दिख रहे हैं.

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