लखनऊ। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के अगला लोकसभा चुनाव न लड़ने की घोषणा के साथ ही रायबरेली में उनके उत्तराधिकारी को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। सोनिया ने लगातार पांच लोकसभा चुनाव जीतकर रायबरेली को कांग्रेस के गढ़ के तौर पर पहचान दिलाई। वह वर्ष 2014 और 2019 के चुनाव में भाजपा की प्रचंड लहर के बावजूद इस सीट से चुताव जीतने में सफल रहीं।
वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से अपनी चुनावी पारी शुरू करने के बाद सोनिया गांधी ने रायबरेली को अपना स्थाई ठिकाना बना लिया। वर्ष 1999 के चुनाव में वह अमेठी के साथ ही बेल्लारी (कर्नाटक) से भी मैदान में उतरीं और दोनों ही सीटों पर जीत हासिल की। हालांकि बाद में उन्होंने बेल्लारी सीट से इस्तीफा दे दिया। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने रायबरेली सीट से नामांकन किया और शानदार जीत दर्ज की। फिर वर्ष 2006, 2009, 2014 और 2019 के चुनाव में भी जीत का सिलसिला बरकरार रखा। इस तरह वह रायबरेली से लगातार पांचवीं बार सांसद हैं।
रायबरेली लोकसभा सीट से कांग्रेस से फिरोज गांधी व पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दो-दो बार तो शीला कौल चार बार सांसद रहीं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के निधन के बाद उनके करीबी मित्र रहे कैप्टन सतीश शर्मा ने रायबरेली में पार्टी की विरासत को संभाला। बाद में उन्होंने सोनिया गांधी के लिए यह सीट छोड़ी। पिछले चुनाव के समय स्वास्थ्य कारणों से सोनिया गांधी ने प्रचार में ज्यादा समय नहीं दिया तो उनकी जगह प्रियंका गांधी ने यह मोर्चा संभाला। तभी से यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि अपनी मां सोनिया गांधी के सक्रिय राजनीति से अलग होने के बाद प्रियंका गांधी ही रायबरेली में पार्टी की विरासत संभालेंगी। हालांकि अब रायबरेली के राजनीतिक हालात काफी बदल गए हैं। कभी कांग्रेस के मजबूत स्तंभ रहे इस क्षेत्र के नेता अब भाजपा का दामन थाम चुके हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अब कांग्रेस को यहां अपनी विरासत बचाए रखने के लिए खासी जद्दोजहद करनी पड़ेगी।