आज जब पंजाब में पराली जलाने की घटनाएँ बदस्तूर जारी हैं और दिल्ली प्रदूषण के खतरनाक स्तर से जूझ रहा है, AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल के तमाम दावे और वादे भी धरे के धरे दिख रहे हैं। इसे समझने के लिए हमें चलना होगा 3 साल पहले, लेकिन फ़िलहाल जानते हैं कि दिल्ली में प्रदूषण की मौजूदा स्थिति क्या है। पंजाब में पराली जलाने की घटनाएँ इस साल 17,000 के पार हो गई हैं और रविवार (5 नवंबर, 2023) को ऐसी 3230 घटनाएँ हुई हैं।
ये एक दिन में इस बार सबसे ज़्यादा संख्या है। साफ़ अर्थ है कि ये घटनाएँ जारी रहेंगी और इस पर लगाम नहीं लगने वाला। सोचिए, 4 नवंबर को पराली जलाने की 1360 गतिविधियाँ सामने आई थीं और अगले ही दिन संख्या लगभग ढाई गुना बढ़ गई। वहीं 2022 की बात करें तो उस साल इसी दिन, यानी 5 नवंबर को ही पंजाब में पराली जलाने की 2817 घटनाएँ सामने आई थीं। ताज़ा घटनाओं की बात करें तो संगरूर, जो कि मुख्यमंत्री भगवंत मान का गृह जिला भी है, वो 551 के साथ टॉप पर रहा।
अब चलते हैं 2 साल पहले, सितंबर 2021 में। तब AAP ने यूट्यूब पर एक वीडियो डाला था, जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहते दिख रहे हैं कि जब किसान अक्टूबर महीने में धान की फसल काटता है तो उसके बाद उसके तने नीचे रह जाते हैं, जिन्हें पराली कहते हैं। उन्होंने कहा था कि दोष सरकारों का है, किसानों का नहीं है, जो किसान अपने खेतों को जलाएगा उस पर जुर्माना लगाए की बजाए सरकारों को समाधान देना चाहिए।
इसके बाद अरविंद केजरीवाल इस वीडियो में कहते हैं कि पिछले साल दिल्ली सरकार ने समाधान निकाला, पूसा इंस्टिट्यूट ने एक बायो डीकंपोजर बनाया, उसे हमने दिल्ली में टेस्ट किया और 39 गाँवों में 1935 एकड़ में इसका छिड़काव किया गया और सामने आया कि इससे धान के डंठल गल जाते हैं, उन्हें काटना नहीं पड़ता है, जलाना नहीं पड़ता। केजरीवाल ने शानदार नतीजे का दावा करते हुए कहा था कि खुद केंद्र सरकार की एजेंसी ने इसकी तारीफ़ की है और 90% ने कहा कि 15-20 दिनों में उनकी पराली जल गई और अगले फसल के लिए खेत तैयार हो गई।
इतना ही नहीं, यही सब ड्रामा आज से 3 साल पहले, यानी नवंबर 2020 में भी हुआ था। तब भी अरविंद केजरीवाल ने पराली जलाने का सस्ता और आसान समाधान देने की बात करते हुए कहा था कि अभी तक की सरकारें पराली जलाने को लेकर सिर्फ बहाना मार रही थीं। तब उन्होंने प्रदूषण के लिए पंजाब में पराली जलाने को जिम्मेदार बताया था, लेकिन अब उनकी पार्टी के लोग यूपी-हरियाणा को इसका जिम्मेदार बताते हुए कह रहे कि पंजाब की घटनाओं का यहाँ कोई असर ही नहीं हो रहा है।
अरविंद केजरीवाल ने तो यहाँ तक कह दिया था कि ये आखिरी साल है जब दिल्ली प्रदूषण को झेल रहा है। इसके बाद 2021 बीत गया, 2022 बीत गया और अब 2023 भी बीत रहा है, लेकिन प्रदूषण घटने की बजाए बढ़ता ही चला जा रहा है, AQI 999 के स्तर पर पहुँच गया है और इससे ज़्यादा तो मापा भी नहीं जा सकता। केजरीवाल का वो ‘आखिरी साल‘ आखिर खत्म नहीं हुआ अभी तक? या फिर वो स्वर्ग के कोई देवता हैं, जिनके लिए दिन और रात पृथ्वी पर दिन-रात की अवधि के हजारों गुना अधिक होते हैं?
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 3 साल पहले दावा किया था कि सिर्फ 20 लाख रुपए में पूरी दिल्ली की पराली को गलाया जा सकता है। इसमें तो वो बजट का भी बहाना नहीं दे सकते हैं। उस समय भी गोपाल राय ही पर्यावरण मंत्री थे, जो अब हैं। डीकंपोजर के छिड़काव के समय बड़े-बड़े दावों में वो भी शामिल थे। कहाँ है आज वो डीकंपोजर? दिल्ली की पूरी पराली 20 लाख रुपए में खाद क्यों नहीं बन रही? ये फॉर्मूला उनकी पार्टी पंजाब में क्यों नहीं अपना रही?
उन्होंने यहाँ तक दावा किया था कि पराली काट कर ले जाने के लिए भी कंपनियाँ आएँगी, इसमें किसानों का पैसा या मेहनत नहीं लगेगी। इसी तरह एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने पंजाब की तत्कालीन सरकार पर हमला बोला था। तब वहाँ कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री थे और कॉन्ग्रेस सत्ता में थी। तब केजरीवाल ने एक टाइमलाइन माँगते हुए कहा था कि दिल्ली की जनता सरकारों से स्पेसिफिक टाइमलाइन चाहती है कि आप कब पराली जलाना शुरू करेंगे और किसानों को मशीनें उपलब्ध कराएँगे।
Promises made by Kejriwal to stop Stubble-burning in Punjab:
•Will turn Stubble into Fertilizer.
•Will make electricity using Stubble.
•Will make Coal from Stubble.
•Farmers will be rich by selling Stubble.Action taken by Kejriwal to stop Stubble-Burning in Punjab:
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•…— Facts (@BefittingFacts) November 5, 2023
इसी तरह एक और रैली में उन्होंने हरियाणा सरकार पर हमला बोला था। मीडिया से बात करते हुए भी उन्होंने पराली से कोयला बनाने की बात कही थी और कहा था कि कई फैक्ट्रियाँ किसानों की पराली खरीदने के लिए तैयार हैं। केजरीवाल का वो बायोकेमिकल सलूशन कहाँ है? कम बजट वाला आसान समाधान कहाँ है? है तो सिर्फ प्रदूषण और पराली से उठता धुआँ। कल वो टाइमलाइन माँगते थे, आज उनके पास इस समस्या के लिए टाइम ही नहीं है।