1954 का कुंभ, 1000+ लोगों की मौत और PM नेहरू: किसे बचाने के लिए इसे कहा गया ‘कुछ भिखारियों की मौत’ – एकमात्र मौजूद पत्रकार ने जो-जो देखा-लिखा

इस घटना का जिक्र पीएम मोदी ने साल 2019 में कौशांबी की जनसभा में किया, तो मीडिया के सारे गिद्ध उन्हें गलत साबित करने में जुट गए। बीबीसी ने तो ये भी झूठ स्थापित करने की कोशिश की, कि जवाहरलाल नेहरू घटना के समय प्रयागराज में थे ही नहीं।


जवाहर लाल नेहरू, कुंभ 1954 में लाशों का ढेरतीर्थराज प्रयागराज में हर 12 साल बाद कुँभ मेले का आयोजन होता है। प्रयागराज महाकुंभ 2025 को लेकर बहुत कुछ लिखा-पढ़ा जा रहा है, लेकिन हम बताने चल रहे हैं आजादी के बाद आयोजित पहले कुंभ मेले के बारे में, जहाँ प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उस समय राष्ट्रपति रहे डॉ राजेंद्र प्रसाद भी पहुँचे थे। लेकिन उनका पहुँचना इतना दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि 1000 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी और 2000 से ज्यादा लोग घायल हो गए।

करीब 1000 लोगों के मारे जाने की वजह थी, भगदड़ का मचना.. जिसके बारे में अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग दावे किए जाते हैं। हालाँकि हम प्रकाशित कर रहे हैं वो सबसे विश्वसनीय आँखों देखी, जिसके हमेशा से छिपाने की कोशिश की गई।

कुंभ 1954 में भगदड़ का नेहरू कनेक्शन

भारत को आजादी 1947 में मिली थी। सन 1954 में पहली बार आजाद भारत के प्रयाग (तत्कालीन इलाहाबाद) में कुंभ का आयोजन होने वाला था। हालाँकि 1948 में अर्धकुंभ का आयोजन हो चुका था। चूँकि कुंभ 1954 का आयोजन खुद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के शहर इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हो रहा था, तो इसमें नेहरू की निजी रुचि भी थी। लेकिन दूसरे शाही स्नान (मौनी अमावस्या) में खुद नेहरू के शामिल होने के फैसले ने प्रयाग में लाशों के ढेर लगा दिए।

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इन घटनाओं को कॉन्ग्रेस की सरकारों ने दबाने के भरसक प्रयास किए, यहाँ तक कि इस 1000 लोगों के मारे जाने की घटना को कुछ ‘भिखारियों’ की मौत कह कर भी सरकार ने प्रचारित किया और असलियत को दबाने की कोशिश की, लेकिन आनंद बिहार पत्रिका के एक पत्रकार की वजह से घटना खुल गई। सबूत के तौर पर तस्वीर भी छप गई। इसके बावजूद इस घटना को कॉन्ग्रेसियों ने पूरी ताकत से छिपाने की कोशिश की। हालाँकि इस घटना के खुल जाने और हादसे के चलते निराशा में घिर चुके उस समय के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत बेहद नाराज हुए थे और पत्रकार के लिए ‘हरा#$%दा’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था।

ये दिन था 3 फरवरी 1954… मौका था कुंभ के दूसरे शाही स्नान यानी मौनी अमावस्या का। जवाहरलाल नेहरू खुद ही प्रयाग पहुँचे थे और उनके साथ थे राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद। समय था सुबह के करीब 10.20 बजे का, जब नेहरू जी और राजेंद्र बाबू की कार त्रिवेणी रोड से आई और बैरियर को पार करके किला घाट की ओर बढ़ी। इस दौरान नेहरू को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी, तो मेले में आ रहा हुजूम और मेले से निकल रहा हुजूम आमने-सामने आ गया। भगदड़ मच गई। लोग खाईं से नीचे गिरने लगे, तो पास का ही बड़ा कुआँ लाशों से भर गया।

आनंद बाजार पत्रिका के लिए मेला कवर कर रहे फोटो जर्नलिस्ट एनएन मुखर्जी ने साल 1989 में ‘छायाकृति’ नाम की पत्रिका में छपे अपने संस्मरण में इन बातों को विस्तार से बताया है। दरअसल, इस मेले में हुए हादसे की भयावहता की पोल उन्हीं की तस्वीर से खुली थी। वो हादसे के समय वो संगम चौकी के पास एक टॉवर पर खड़े थे।

उन्होंने अपने संस्मरण में बताया था कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को उसी दिन संगम स्नान के लिए आना था। इसलिए सभी पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी उनके आगमन की तैयारियों में व्यस्त थे। लेकिन सुबह 10.20 बजे जब दोनों कार से किला घाट की तरफ बढ़े, तो भीड़ बेकाबू हो गई। हर तरफ लाशें थी। वो खुद कई लाशों के ऊपर से चढ़ कर आगे गए थे और तस्वीरें खींची थी।

उन्होंने हैरानी जताते हुए लिखा था कि इस बड़ी घटना के बावजूद हादसे वाली जगह से दूर रहे शीर्ष अधिकारी सरकारी आवास पर शाम 4 बजे तक चाय-नाश्ते में व्यस्त रहे, और उन्हें इस हादसे के बारे में जानकारी तक नहीं मिली। वहीं, जब एनएन मुखर्जी करीब 1 बजे अपने दफ्तर पहुँचे, जहाँ संपादक समेत तमाम पत्रकार साथी उनके जिंदा बचने पर हैरानी जताते हुए उनके आने पर खुशी जताई।

इस घटना में मारे गए लोगों के शव किसी को दिए नहीं गए, बल्कि ढेर के ढेर लगाकर सामूहिक रूप से जला दिए गए। एनएन मुखर्जी ने बताया था कि वो किसी तरह से उन शवों के ढेर के पास पहुँचे थे। उन्होंने पुलिसकर्मी के पैर पकड़ते हुए उससे से कहा था कि वो अपनी “मृत दादी को आखिरी बार देखना चाहते हैं”, जिसके बाद उन्हें शवों के पास जाने दिया गया। इस बीच, एनएन मुखर्जी ने चुपके से छोटे कैमरे से सामूहिक रूप से जलाए जा रहे शवों की तस्वीर खींच ली थी।

आनंद बाजार पत्रिका ने हादसे की खबर तस्वीर के साथ छापी। चूँकि बाकी जगहों पर बहुत कम खबर छपी, ऐसे में कॉन्ग्रेसी सिस्टम हैरान था कि हादसे की तस्वीर छप कैसे गई। उन तस्वीरों को देखते ही मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने चिल्लाकर कहा था, ‘कहाँ है ये ह$%#@मजा%$ फोटोग्राफर।’ एनएन मुखर्जी ने कहा कि इस बड़े हादसे से सबक लेकर सरकार ने आगे के सभी कुंभ मेले के लिए महीनों-सालों पहले से व्यवस्था करनी शुरू की थी। हालाँकि इस घटना के दौरान जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी को छिपाने के प्रयास अब तक चले आ रहे हैं।

पीएम मोदी ने मंच से की सही बात, तो गलत ठहराने में जुटा मीडिया गैंग

इस पूरी घटना को हमेशा से छिपाने की कोशिश होती रही है। तथ्यों को भी तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है। साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कौशांबी की एक जनसभा में इस वाकये का जिक्र किया था। उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि प्रयागराज कुंभ 1954 की लोहमर्षक घटना को छिपाने, दबाने के प्रयास किए गए। इसके बाद तो मानों पालतू मीडिया गैंग को कोई चारा मिल गया हो। तुरंत ही ऐसे गवाह पेश कर दिए गए, जिनका उस स्थान से कोई खास लेना-देना नहीं था और जवाहर लाल नेहरू के नारनामे को छिपाने के लिए ‘सुनी-सुनाई’ बातों को छापा गया। इस मामले को लेकर 12 साल पहले भास्कर ने भी एक रिपोर्ट छापी थी, लेकिन उसमें भी नेहरू की संलिप्तता को छिपा लिया गया था। बता दें कि हादसे के बाद इंडिया एक्सप्रेस ने इस घटना में सरकारी अधिकारियों के हवाले से सिर्फ 300 लोगों के मारे जाने की बात प्रकाशित की थी। हालाँकि टाइम पत्रिका ने हादसे में 500 लोगों के मारे जाने की बात कही थी, लेकिन नेहरू की मौजदूगी को हर तरफ से छिपाने की कोशिश ही की गई।

कुंभ 1954 के हादसे की तस्वीर, जो एनएन मुखर्जी ने खींची थी (फोटो साभार: TheStatesman)

ऐसा ही एक किस्सा बीबीसी हिंदी ने भी छापा, जिसमें उसने ये बताने की कोशिश की थी कि उस समय का मीडिया बहुत आजाद था। लेकिन एनएन मुखर्जी को वो भूल गया और ये साबित करने की कोशिश में पूरा जोर लगा दिया कि उस हादसे की वजह जवाहरलाल नेहरू नहीं थे। यही नहीं, बीबीसी ने तो ये भी झूठ स्थापित करने की कोशिश की, कि जवाहरलाल नेहरू घटना के समय प्रयागराज में थे ही नहीं। अलबत्ता उसने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को जरूर खींचने की कोशिश की, कि उनके सामने ही भगदड़ हुई।

(एनएन मुखर्जी के संस्मरण के बारे में 4 फरवरी 2019 को द-स्टेट्समैन ने अंग्रेजी में छापा था। वो मूल रिपोर्ट स्क्रॉल की हिंदी वेबसाइट सत्याग्रह पर छपी थी। चूँकि सत्याग्रह वेबसाइट बंद हो गई है, ऐसे में ये रिपोर्ट सिर्फ द स्टेट्समैन पर ही उपलब्ध है।)